
गरियाबंद/फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)। बिहार में नीतीश कुमार द्वारा एकाएक भाजपा से गठबंधन कर इंडिया गठबंधन को जो जोर का झटका धीरे से दिया है उससे भाजपा में काफी प्रसन्नता के साथ लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह न सिर्फ आसान बताई जा रही है वरन् भाजपा की नरेन्द्र मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने की कामयाबी नीति में सफलता सुनिश्चित मान रही है। इस बारे में चर्चा करते हुए पूर्व सांसद एवं पिछड़ा वर्ग प्रकोश्ठ के उपाध्यक्ष चंदूलाल साहू ने कहा कि लोकसभा चुनाव में अब दो-ढाई महीने का समय ही शेश है। भाजपा हर हालात में नरेन्द्र मोदी को ही तीसरी बार सत्ता के सिंहासन पर बैठाना चाहती है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर से पैदा हुई हिंदूत्व लहर पर सवार भाजपा जाति को साधने में भी पीछे नहीं है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान हो चुका है। दलितों के लुभाने के लिए बड़ा अभियान शुरू करने का प्लान भी तैयार हो चुका है। दूसरी तरफ विपक्ष खासकर उसके सबसे बड़ा गठबंधन इंडिया की नजर हर हाल में मोदी के विजय रथ को रोकने पर है। लेकिन लगभग टूट एवं बिखर चुके इंडिया किस तरह मोदी रथ को रोक पाएगी ? क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडिया गठबंधन हांफने लगा है। नीतीश कुमार का पाला पाला बदलना वैसे ही है जैसे युद्ध शुरू होने से ऐन पहले सारथी ही पाला बदल लें। भाजपा प्रदेश प्रवक्ता डॉ. श्रीमती श्वेता शर्मा ने अपना मत व्यक्त करते हुए बताया कि बिहार में नीतिश की भूमिका के कारण ही इंडिया गठबंधन में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही थी। की छवि अवसरवादी नेता की हो गयी है। दरअसल यह अवसरवादिता और मौकापरस्ती की हद है जिसका राजनीति में प्रतिकार होना चाहिए। वास्तव में बिहार का ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इस राज्य में जातिवादी और परिवारवादी राजनीति ने इस प्रदेश की जनता के मौलिक अधिकारों से उनको वंचित किए हुए है और इस प्रांत के लोगों को भारत का सबसे गरीब आदमी बनाया हुआ है। जबकि बिहारियों का भारत के सर्वागीण विकास में योगदान कम नहीं है, सबसे अधिक मेहनती एवं बुद्धिजीवी लोग यही से आते है। राजिम के पूर्व विधायक संतोश उपाध्याय ने कहा कि भाजपा एवं जेडीयू नेता नीतीश कुमार के बीच भीतर-ही-भीतर यह खिचड़ी विगत कुछ समय से पक रही थी। इसका पहला ठोस संकेत जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारतरत्न दिए जाने की घोशणा पर उनके द्वारा पहले भाजपा सरकार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिए धन्यवाद से सामने आया। दूसरा बड़ा संकेत कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती के मौके पर आयोजित समारोह में नीतीश कुमार ने तंज कस कर कि आजकल बहुत से लोग अपने परिवार के सदस्यों को ही आगे बढ़ाने में लगे रहते है इस रूप में सामने आया। इसे सीधे तौर पर लालू प्रसाद यादव पर हमला माना गया, जिनकी पार्टी के साथ वह बिहार में सरकार चला रहे है। अब तक नरेन्द्र मोदी और भाजपा के खिलाफ बिखरे हुए विपक्ष को एकजुट करने की कवायद करने वाले नीतीश कुमार ही रहे थे। नीतीश कुमार ने ही पिछले साल जून में पटना में विपक्षी दलों की महाजुटान की थी। विधायक रोहित साहू ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नीतीश ही नहीं, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस को आंख दिखा रहे है जिससे गठबंधन की गाड़ी आगे सरकती नजर नहीं आ रही है। बिहार की उठापटक एवं बदलते राजनीतिक समीकरणों का सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। बिहार में 40 लोकसभा सीटें है। अगर नीतीश कुमार भाजपा से मिलकर एनडीए गठबंधन का हिस्सा बने है तो इनमें से अधिकाधिक लोकसभा सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की जीत की संभावना अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है। भाजपा नेता एवं राजिम भक्तिन मंदिर के उपाध्यक्ष बोधन साहू का कहना है कि नीतीश कुमार की पहल पर ही विपक्ष के तमाम दल मतभेदो के बावजूद एक प्लेटफार्म पर आने को तैयार हुए ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारा जा सके। लेकिन जब चुनाव एकदम सिर पर आ गया तो नीतीश कुमार ही पाला बदल गए। तिनका-तिनका जोड़कर विपक्षी एकजुटता का ताना-बाना तैयार करने वाले वाले जेडीयू चीफ ऐन वक्त पर खुद ही गठबंधन से दूर हो गए। ये विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए बहुत बड़ा आघात है। वरिश्ठ भाजपा नेता भागवत हरित ने गंभीर वक्तव्य में कहा कि जेडीयू से भाजपा गठबंधन से अब लगभग यह तय हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विपक्षी दलों एवं उनके नेताओं के द्वारा हल्के में लेने की स्थितिया उनके लिए कितनी भारी हो सकती है। दूसरा भारत की राजनीति में भाजपा अगर कुछ करने की ठान लेती है तो वह उसे पूरा करती ही है। बिहार में सत्ता का समीकरण बदलना इसी बात का द्योतक है। बिहार में मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होने का फैसला कर लिया और एक बार फिर भाजपा के साथ मिलकर सरकार ली है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा की रणनीति का यह एक बड़ा दांव सफल होता हुआ दिख रहा है।