एफएसएसएआई ने फल व्यापारियों को फल पकाने में कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग न करने का अनुपालन सुनिश्चित करने के प्रति सचेत किया


नई दिल्ली । भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने विशेष रूप से आम के मौसम में फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड पर प्रतिबंध का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए पकने वाले कक्षों का संचालन करने वाले व्यापारियों/फल संचालकों/खाद्य व्यवसाय संचालकों (एफबीओ) को सचेत किया है। एफएसएसएआई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के खाद्य सुरक्षा विभागों को एफएसएस अधिनियम, 2006 और उसके तहत बनाए गए नियमों/विनियमों के प्रावधानों के अनुसार ऐसी गैरकानूनी प्रथाओं में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ सतर्क रहने, गंभीर कार्रवाई करने और सख्ती से निपटने की सलाह दे रहा है।

कैल्शियम कार्बाइड, जो आमतौर पर आम जैसे फलों को पकाने के लिए उपयोग किया जाता है, से एसिटिलीन गैस निकलता है जिसमें आर्सेनिक और फास्फोरस के हानिकारक अंश होते हैं। ये पदार्थ, जिन्हें ‘मसाल ‘ के नाम से भी जाना जाता है, चक्कर आना, मुँह सूखना, जलन, कमजोरी, निगलने में कठिनाई, उल्टी और त्वचा के अल्सर आदि जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा, एसिटिलीन गैस के साथ काम करने वालों के लिए भी उतनी ही खतरनाक है। प्रयोग के दौरान यह संभव है कि कैल्शियम कार्बाइड फलों के सीधे संपर्क में आ जाए और फलों पर आर्सेनिक और फास्फोरस के अवशेष छोड़ जाए।

इन खतरों के कारण, खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) के विनियमन 2.3.5 के तहत फलों को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस विनियमन में स्पष्ट रूप से कहा गया है, “कोई भी व्यक्ति बिक्री या पेशकश नहीं करेगा या किसी भी विवरण के तहत बिक्री के उद्देश्य से अपने परिसर में बिक्री के लिए ऐसे फल नहीं रखेगा जो एसिटिलीन गैस, जिसे आमतौर पर कार्बाइड गैस के रूप में जाना जाता है, के उपयोग द्वारा कृत्रिम रूप से पकाया गया है।”

प्रतिबंधित कैल्शियम कार्बाइड के बड़े पैमाने पर उपयोग के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, एफएसएसएआई ने भारत में फलों को पकाने के लिए एक सुरक्षित विकल्प के रूप में एथिलीन गैस के उपयोग की अनुमति दी है। एथिलीन गैस का उपयोग फसल, किस्म और परिपक्वता के आधार पर 100 पीपीएम (100 μl/L) तक की सांद्रता में किया जा सकता है। एथिलीन, फलों में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक हार्मोन है, जो रासायनिक और जैव रासायनिक गतिविधियों की एक श्रृंखला शुरू और नियंत्रित करके पकने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है। कच्चे फलों को एथिलीन गैस से उपचारित करने पर प्राकृतिक रूप से पकने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जब तक कि फल स्वयं पर्याप्त मात्रा में एथिलीन का उत्पादन शुरू नहीं कर देता।

इसके अलावा, केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबी और आरसी) ने आम और अन्य फलों को एकसार पकाने के लिए एथेफॉन 39% एसएल को मंजूरी दे दी है।

   एफएसएसएआई ने “कृत्रिम रूप से फलों को पकाना – एथिलीन एक सुरक्षित फल पकाने वाली गैस ” (https://www.fssai.gov.in/upload/uploadfiles/files/Guidance_Note_Ver2_Artificial_Ripning_Fruits_03_01_2019_Revised_10_02_2020.pdf) शीर्षक से एक व्यापक मार्गदर्शन दस्तावेज़ प्रकाशित किया है, जिसमें खाद्य व्यवसाय संचालकों को सुझाव दिया गया है कि फलों को कृत्रिम रूप से पकाने की प्रक्रिया का पालन करें। यह दस्तावेज़ एथिलीन गैस द्वारा फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की रूपरेखा पेश करता है जैसे प्रतिबंध, एथिलीन पकाने की प्रणाली/चैंबर के लिए आवश्यकताएं, उपयोग की परिस्थिति, एथिलीन गैस के स्रोत, विभिन्न स्रोतों से एथिलीन गैस के अनुप्रयोग के लिए प्रोटोकॉल, उपचार के बाद संचालन, सुरक्षा दिशानिर्देश आदि शामिल हैं।

यदि उपभोक्ताओं द्वारा कैल्शियम कार्बाइड का कोई उपयोग या फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए पकाने वाले केमिकलों का उपयोग करने का कोई गलत तरीका देखा  जाता है, तो ऐसे उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए इस मामले को  संबंधित राज्य खाद्य सुरक्षा आयुक्तों के ध्यान में लाया जा सकता है। सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के खाद्य सुरक्षा आयुक्तों का विवरण नीचे दिए गए लिंक पर उपलब्ध है: https://www.fssai.gov.in/cms/commissioners-of-food-safety.php

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