CGNEWS: मुख्यालय में रहने के आदेश की खुलेआम अवहेलना: पाली जनपद सीईओ भूपेंद्र सोनवानी की ‘अप-डाउन’ अफसरशाही!

– रोज़ाना बिलासपुर से आते हैं जनपद, 11 बजे के बाद पहुँचते हैं दफ्तर, 5 से पहले रवाना भी हो जाते हैं!
– कलेक्टर के आदेश को दिखा रहे ठेंगा, ग्रामीण परेशान, योजनाओं की रफ्तार थम गई!
– सवाल ये: जब अधिकारी ही गैरहाजिर, तो विकास कैसे होगा?
कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। विकासखंड पाली की 93 ग्राम पंचायतें इंतज़ार करती रह जाती हैं उस अफसर का, जो खुद को जनता का सेवक कहता है लेकिन व्यवहार में अपने ‘सुविधा’ के नियम चलाता है। बात हो रही है पाली जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) भूपेंद्र सोनवानी की, जिनका शासन और जिला प्रशासन के निर्देशों से कोई वास्ता ही नहीं दिखता।
- दफ्तर आने की घड़ी: 11 बजे के बाद
- दफ्तर छोड़ने का वक्त: 5 बजे से पहले!
- निवास: बिलासपुर — जबकि सरकारी आवास पाली में उपलब्ध!
ऐसी अफसरशाही के चलते ग्रामीणों की आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं बचता। योजनाओं की समीक्षा हो या ग्राम पंचायतों के कार्यों की मॉनिटरिंग — सीईओ की गैरमौजूदगी में सब अधूरा ही रह जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी उन ग्रामीणों को होती है जो सैकड़ों किलोमीटर दूर से अपनी समस्याएं लेकर जनपद कार्यालय पहुँचते हैं, लेकिन वहां अधिकारी मिलते ही नहीं।
कलेक्टर का आदेश हवा में उड़ाया!
कुछ ही सप्ताह पूर्व कलेक्टर अजीत वसंत ने सभी विभाग प्रमुखों को निर्देश दिया था कि वे अपने-अपने मुख्यालयों में अनिवार्य रूप से निवास करें, जिससे जनहित के कार्य प्रभावित न हों। लेकिन सीईओ सोनवानी जैसे अधिकारियों के लिए ये निर्देश शायद कोई मायने नहीं रखते। वे खुलेआम जिला प्रशासन की चेतावनी को नजरअंदाज़ करते हुए बिलासपुर से अप-डाउन कर रहे हैं, और कार्यस्थल पर उपस्थिति को ‘औपचारिकता’ मान बैठे हैं।
जब कलेक्टर स्वयं इस बात पर ज़ोर दे चुके हैं कि “जनपद स्तर के अधिकारी जनता के सबसे करीब होते हैं और इनका मुख्यालय में मौजूद रहना अनिवार्य है,” तो फिर इस सीईओ की मनमानी पर कार्रवाई क्यों नहीं?
आवास है फिर भी नहीं रुकते!
पाली जनपद कार्यालय परिसर में ही आवंटित सरकारी आवास को छोड़कर सीईओ सोनवानी बिलासपुर में रहना पसंद करते हैं। सवाल ये है कि जब सरकार ने आवास की सुविधा दी है, तो फिर अफसर उसे उपयोग क्यों नहीं कर रहे? क्या इसका मतलब ये नहीं कि जनसेवा के नाम पर वे केवल ‘नौकरी’ कर रहे हैं और संवेदनशीलता का कोई स्थान नहीं?
जनता की तकलीफें और अफसर की मनमानी
- योजनाएं अधूरी
- फाइलें अटकी
- शिकायतें अनसुनी
- जनसुनवाई गायब
जब जनता को ही अधिकारी नहीं मिलेंगे तो फिर राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं का लाभ गाँवों तक कैसे पहुँचेगा? ग्रामीण यह सवाल लेकर भटकते रहते हैं और सीईओ समय से पहले घर लौट जाते हैं।
क्या जिला प्रशासन उठाएगा सख्त कदम?
ऐसी लापरवाह अफसरशाही पर अब सवाल उठना लाज़मी है। क्या जिला प्रशासन ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई करेगा?
क्या सीईओ भूपेंद्र सोनवानी से जवाब तलब किया जाएगा?
क्या अप-डाउन पर तत्काल रोक लगेगी?
या फिर अफसरशाही इसी तरह जनता की उम्मीदों को रौंदती रहेगी?
जनता पूछ रही है – “हम कहाँ जाएँ?”
पाली क्षेत्र के ग्रामीण अब अपने अधिकारों को लेकर सजग हो रहे हैं। कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे को लेकर जनहित याचिका या आरटीआई दाखिल करने की तैयारी में हैं। प्रशासन की निष्क्रियता और अफसर की मनमानी को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा — यह आवाज़ अब गाँवों से निकलकर ज़िले के गलियारों तक पहुँच रही है।
यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो आने वाले समय में यही रिपोर्ट एक बड़े जनआंदोलन की नींव बन सकती है।