CGNEWS :”घरघोड़ा थाना : जहां न्याय बिकता है, और अपराधियों की होती है जय-जयकार!”

रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला एक बार फिर सवालों के कटघरे में खड़ा है — वजह है घरघोड़ा थाना, जहां कानून की चौखट पर एक मां की चीखों की कोई कीमत नहीं, जहां वर्दीधारी रक्षक, दलाल बनकर अपराधियों के संरक्षक की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
30 अप्रैल की रात का नरसंहार :
नवापारा में 30 अप्रैल 2025 की रात खून से सनी थी। पांच युवकों—यश सिन्हा, रितेश गुप्ता, शैलेश चौहान, आयुष डनसेना और निखिल शर्मा—ने मिलकर एक युवक को इस कदर पीटा कि वह मौत के मुहाने तक पहुंच गया। बाल काटे गए, कपड़े फाड़े गए, शरीर पर गहरे जख्म, और सबसे भयानक—आरोपियों की ज़ुबान पर था एलान:
“हमने मारा है, दोबारा मारेंगे, खत्म कर देंगे!”
यह सिर्फ मारपीट नहीं थी, यह खुलेआम गुंडाराज का ऐलान था। इलाके के लोग डरे-सहमे हैं। पीड़ित की हालत देखकर अस्पताल में भी हड़कंप मच गया था।
मां भी बनी निशाना :
जब मां मौके पर पहुंची, तो बेटा अधमरा पड़ा था। लेकिन दरिंदगी यहीं नहीं रुकी। मां को गंदी-गंदी गालियां दी गईं, उसके शरीर के साथ छेड़छाड़ की गई, गले की चेन लूट ली गई। ये सब उसी इलाके में हुआ जहां पुलिस की गश्त होनी चाहिए थी। आज भी उस मां की आंखों में डर, और दिल में आग है।
17 मई – थाने में इंसाफ नहीं, सौदेबाज़ी मिली :
जख्मी बेटे और अपमानित आत्मा के साथ जब यह महिला घरघोड़ा थाने पहुंची, तो उम्मीद थी कि पुलिस उसकी आखिरी आस बनेगी। लेकिन थाने में तो इंसाफ नहीं, एक ‘स्क्रिप्टेड ड्रामा’ चल रहा था।
थाना प्रभारी ने पहले तो घंटों बैठाकर रखा, फिर एक बंद कमरे में बुलाकर धमकी दी—
“शिकायत वापस लो, नहीं तो उल्टा तुम्हारे बेटे पर छेड़छाड़ और एससी-एसटी एक्ट लगा देंगे।”
हैरानी की बात यह थी कि उसी कमरे में आरोपी यश सिन्हा का पिता और वकील आराम से कुर्सी पर बैठे थे, जबकि पीड़िता खड़ी थी—डरी हुई, मगर झुकी नहीं। क्या अब थाने में रौब, रसूख और रिश्वत से ही इंसाफ तय होगा?
क्या रायगढ़ पुलिस अपराधियों की तनख्वाह पर है?
ये घटनाएं अब सिर्फ एक केस नहीं हैं। ये सिस्टम की गंधाती सच्चाई को उघाड़ कर सामने रख रही हैं।
- क्या रायगढ़ पुलिस अब FIR दर्ज करने की बजाय “डील” करने का अड्डा बन चुकी है?
- क्या वर्दी अब अपराधियों की लॉबी का हिस्सा बन चुकी है?
- क्या थाना इमारतें अब डर की फैक्ट्री हैं, जहां पीड़ित को दबाया और अपमानित किया जाता है?
थाने के भीतर सत्ता, पैसे और वकीलों की मिलीभगत से अब यह साफ होता जा रहा है कि आम आदमी की शिकायतों की कोई सुनवाई नहीं होती।
CCTV फुटेज क्यों छुपाई जा रही है?
17 मई को दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक का CCTV फुटेज सबूत है। उसमें दिखेगा कि कैसे आरोपियों के परिवार और वकील थाने में खुलेआम बैठक कर रहे थे, कैसे पीड़िता को डराया गया। फिर यह फुटेज सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही? प्रशासन किस बात से डर रहा है? क्या सच्चाई दबाने की कीमत वर्दी में छुपाई जा रही है?
जनता की अदालत का ऐलान :
अब बात कानून की अदालत से आगे निकल गई है। यह जनता की अदालत का मामला है।
- अगर घरघोड़ा थाना प्रभारी को तत्काल निलंबित नहीं किया गया,
- अगर आरोपी अब भी खुले घूम रहे हैं,
- अगर CCTV फुटेज सार्वजनिक नहीं की गई,तो रायगढ़ की सड़कों पर न्याय की आवाज गूंजेगी।
ये चेतावनी नहीं, जनआंदोलन का पहला घोषणापत्र है। अब खामोशी, कमजोरी नहीं — एकजुटता और क्रांति का समय है।
यह लड़ाई अब एक मां की नहीं, रायगढ़ की हर बेटी, हर बहन, हर बेटे की है।
जब खाकी बिकती है, तो खून सड़कों पर बहता है।
अब या तो सिस्टम सुधरेगा, या जनता उसे बदल डालेगी।
रायगढ़ पुलिस, जवाब दो :
- क्या तुम्हारी वर्दी अपराधियों की सुरक्षा कवच बन गई है?
- क्या अब थाने में कानून नहीं, सौदेबाज़ी चलती है?
- और कब तक तुम खामोश रहोगे जब वर्दी पर दलाली का दाग लग चुका है?
GANGAPRAKASH इस मुद्दे को आगे भी उठाता रहेगा—क्योंकि जब कोई चुप नहीं रहता, तभी बदलाव होता है।
इंसाफ की जंग शुरू हो चुकी है — क्या तुम साथ हो?