Brekings:लैलूंगा में सरकारी सिस्टम हुआ फेल – सड़क पर तड़पता रहा युवक, पत्रकार ने बचाई जान!
108 एम्बुलेंस नदारद, 112 वाहन ठप – छत्तीसगढ़ की आपात सेवाएं ICU में!

लैलूंगा/रायगढ़(गंगा प्रकाश)। लैलूंगा के आदिवासी बहुल क्षेत्र में शुक्रवार को जो हुआ, उसने पूरे सिस्टम की सांसें उखाड़ दीं। एक सड़क हादसे में घायल युवक सड़क पर खून से लथपथ घंटों तड़पता रहा, लेकिन ‘आपात सेवा’ नामक सरकारी ढांचा सिर्फ तमाशबीन बनकर रह गया। न 108 एम्बुलेंस पहुंची, न 112 पुलिस वाहन! आखिरकार एक पत्रकार ने इंसानियत दिखाते हुए युवक को अस्पताल पहुंचाया और उसकी जान बचाई। यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलती है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है – क्या आदिवासी अंचलों में आम जनता की जान की कोई कीमत नहीं?
हादसा – जब ‘प्रशासन’ बना तमाशबीन और ‘मीडिया’ बना मसीहा!
बुलड़ेगा (जशपुर) निवासी नीलाम्बर, शुक्रवार दोपहर को किसी काम से लैलूंगा आया था। तेज रफ्तार हाइवा वाहन ने उसे बेरहमी से टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि युवक हवा में उछल कर दूर जा गिरा और सड़क पर खून में सना पड़ा रहा। स्थानीय लोग दौड़े, अफरा-तफरी मच गई। लोगों ने तुरंत 108 एम्बुलेंस को कॉल किया, लेकिन जो जवाब मिला उसने सभी को स्तब्ध कर दिया – “क्षमा करें, कोई वाहन उपलब्ध नहीं है!”
इसके बाद लोगों ने 112 डायल कर पुलिस वाहन बुलाने की कोशिश की, लेकिन दूसरी तरफ से जवाब मिला – “थाने का वाहन खराब पड़ा है!”
घायल युवक जमीन पर पड़े-पड़े दर्द से कराह रहा था, मदद की गुहार लगा रहा था… लेकिन पूरा सिस्टम नदारद था।

पत्रकार ने दिखाई इंसानियत – 10 मिनट की देरी जानलेवा हो सकती थी!
जब पूरा सरकारी तंत्र मौन दर्शक बन गया, तब लैलूंगा प्रेस क्लब के अध्यक्ष चंद्रशेखर जायसवाल ने मोर्चा संभाला। उन्होंने वक्त गंवाए बिना निजी पिकअप वाहन का इंतज़ाम किया और खुद घायल युवक को अस्पताल लेकर दौड़े।
डॉक्टरों ने बताया कि यदि 10 मिनट और देर हो जाती, तो युवक की जान बचा पाना संभव नहीं होता। इस पत्रकार की सजगता और मानवता ने एक जिंदगी बचा ली – और एक बार फिर साबित कर दिया कि असली पत्रकारिता सिर्फ बयान लेने या खबर चलाने का नाम नहीं, बल्कि ज़रूरतमंदों के लिए खड़े होने का हौसला है।
जनता का गुस्सा – यह सिर्फ लापरवाही नहीं, ‘सरकारी हत्या’ है!
घटना के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। ग्रामीणों ने इसे सीधी ‘सरकारी हत्या’ करार देते हुए दोषियों पर एफआईआर की मांग की। उनका कहना था कि अगर समय पर एम्बुलेंस या पुलिस वाहन पहुंचता, तो युवक सड़क पर तड़पता नहीं।
प्रमुख सवाल जो सरकार से पूछे जा रहे हैं –
- 108 एम्बुलेंस आखिर कहां थीं?
- महीनों से 112 वाहन खराब है, उसे अब तक रिपेयर क्यों नहीं किया गया?
- क्या आदिवासी अंचल में आपात सेवाओं की कोई अहमियत नहीं?*क्या जनता को मरने के लिए छोड़ दिया गया है?
मांगें – अब नहीं सहेंगे लापरवाही!
अब लोगों ने एक सुर में शासन से कड़े कदम उठाने की मांग की है:
- स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई हो
- लैलूंगा क्षेत्र में कम से कम दो 108 एम्बुलेंस स्थायी रूप से तैनात हों
- 112 वाहन को 24 घंटे के भीतर मरम्मत कर चालू किया जाए
- थानों और अस्पतालों की जवाबदेही तय की जाए
- ऐसी घटनाओं में देरी के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो
क्या छत्तीसगढ़ की आपात सेवाएं कोमा में हैं?
यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि उस गंभीर सच्चाई की झलक है जो आज छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में आम हो चुकी है। ‘108 एम्बुलेंस सेवा’ एक समय राज्य की शान हुआ करती थी, लेकिन अब वह खुद इलाज की मोहताज है। ‘112’ जैसी पुलिस सेवा भी सिर्फ नाम की रह गई है।
पत्रकार की पहल – सिस्टम को आईना दिखा गई!
चंद्रशेखर जायसवाल की यह पहल न केवल एक जान बचाने वाली थी, बल्कि उसने सरकार और समाज को यह भी दिखाया कि जब सिस्टम फेल हो जाता है, तब भी एक संवेदनशील नागरिक बहुत कुछ बदल सकता है।
यह सिर्फ एक खबर नहीं, एक चेतावनी है –
अगर अब भी शासन नहीं जागा, तो अगली बार ये सिस्टम किसी और को निगल जाएगा!