Jagannath Ratha Yatra 2025: इस मंदिर में रहती हैं भगवान जगन्नाथ की मौसी, हर साल भोग ग्रहण करने आते हैं भगवान; पौराणिक है कथा

पुरी का मौसी माँ मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि महाप्रभु श्री जगन्नाथ के साथ गहरा भावनात्मक रिश्ता भी दर्शाता है। यहां देवी अर्धशनी या ‘अर्धशोशिनी’ को महाप्रभु जगन्नाथ की मौसी माना जाता है। यह मंदिर ग्रैंड रोड पर स्थित है और रथ यात्रा के समय इसमें विशेष चहल-पहल होती है। इस मंदिर को ओडिशा के केशरी वंश के राजाओं के समय में बनवाया गया था। रथ यात्रा के दौरान इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इससे जुड़ी कई विशेष परंपराएं निभाई जाती हैं।

Brekings: “नवापारा पंचायत का सचिव बना शराबी शोपीस, ग्रामीणों का फूटा गुस्सा – पंचायत भवन में ताला जड़ने की चेतावनी”

हर साल रुकता है भगवान का रथ

श्री गुंडीचा दिवस पर जब महाप्रभु श्री जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथों पर सवार होकर बाहुड़ा यात्रा यानी गुंडीचा मंदिर से अपने मंदिर की तरफ वापसी की यात्रा पर निकलते हैं, तो उनके रथ मौसी माँ मंदिर के सामने रुकते हैं। यहां भगवान को उनकी मौसी के हाथों से बना ‘पोड़ा पीठा’ का भोग लगाया जाता है। यह पीठा विशेष प्रेम से बनाया जाता है और इसे खाने के बाद ही रथ आगे बढ़ते हैं।

रथ यात्रा के दिन जब भगवान गुंडीचा मंदिर की ओर जा रहे होते हैं, तो रथ थोड़ी देर के लिए मौसी मां मंदिर के पास रुकता जरूर है। चूंकि भगवान को गुंडीचा मंदिर जाने की बहुत जल्दी होती है, तो रथ ज्यादा देर नहीं रुकते, लेकिन बाहुडा यात्रा के दिन वे अपनी मौसी के दरवाजे जरूर रुकते हैं और उनसे भोग ग्रहण करते हैं।

राजा रघुवंशी की नरबलि दी गई थी… अब राजा के बड़े भाई ने सोनम पर तंत्र-मंत्र का लगाया आरोप

भगवान को पंसद है पोड़ा पीठा

माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ को पोड़ा पीठा बहुत पसंद है। यह पीठा खास तौर पर उन्हीं के लिए तैयार किया जाता है । पीठा में पनीर, चावल का आटा, मैदा, घी, किशमिश, बादाम, कपूर, दालचीनी और लौंग जैसी चीजें मिलाई जाती हैं। परंपरा के अनुसार भगवान अपनी मौसी से भोग लेकर ही श्रीमंदिर की ओर बढ़ते हैं।

मौसी माँ मंदिर की कथा

प्राचीन मान्यता है कि एक समय पुरी में समुद्र का पानी इतना बढ़ गया था कि पूरा क्षेत्र जलमग्न हो गया था। तब देवी अर्धशनी या अर्धशोशिनी ने उस पानी को अपने में समाहित कर लिया था और पूरी को बचा लिया। तभी से उन्हें इस मंदिर में पूजा जाता है। मौसी माँ, यानि देवी अर्धशनी, का स्वरूप देवी सुभद्रा जैसा दिखता है। ऐसा भी कहा जाता है कि बहुत पहले पुरी के बड़-दांड (ग्रैंड रोड) को ‘मालिनी’ नदी दो हिस्सों में बांटती थी। तब रथ यात्रा के लिए छह रथ बनाए जाते थे। पहले तीन रथों पर देवी देवताओं को मालिनी नदी के किनारे तक लाया जाता था फिर नावों से विग्रहों को नदी पार कराकर बाकी तीन रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता था। इस परेशानी को देखकर देवी अर्धशनी ने नदी का पानी अपने में समाहित कर लिया। तभी से मान्यता है कि भगवान बाहुड़ा यात्रा के दिन मौसी माँ मंदिर रुकते हैं और उनका बनाया पोड़ा पीठा खाते हैं।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *