सामाजिक समरसता की आचार संहिता है श्रीराम कथा – पं० विश्वकान्ताचार्य

अरविन्द तिवारी 

गढ़वा (गंगा प्रकाश)  – मनुष्य को अपने जीवन जीने की अनेक विधियां हैं तथापि उन सभी विधियों में भगवान द्वारा धर्म द्वारा वेद द्वारा शास्त्र द्वारा जो भी धर्मानुकूल नियम बताये गये हैं वही श्रेयस्कर होता है। आप भले ही संसार की सारी डिग्रियां हासिल कर लें , चाहे बड़े बड़े पद पर पदस्थ हो जायें परंतु जब तक आप समाज के प्रति उदार नहीं हो जाते हैं धर्म तथा राष्ट्रके प्रति कर्तव्यनिष्ठ नहीं हो जाते हैं तब तक से आपको सामाजिक समरसता की दृष्टि से नहीं देखा जायेगा। 

            उक्त बातें वाराणसी वृंदावन से पधारे अंतर्राष्ट्रीय कथा प्रवक्ता आचार्य पं० विश्वकान्ताचार्यजी महाराज ( पुराणाचार्य ) ने गढ़वा झारखंड के चिनियारोड में माँ दुर्गा पूजा समिति शिवमंदिर के तत्वाधान में आयोजित हो रहे भव्य विहंगम संगीतमय श्रीराम कथा के मंच से कही। उन्होंने कहा संपूर्ण रघुवंश के लोग जिस पारब्रह्म परमेश्वर अखिल कोटी ब्रह्मांडनायक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराघवेंद्र सरकार को सर्वोत्तम पुत्र ,वर ,राजा माना करते थे वही प्रभु श्रीराम अपनी हर एक एक क्रिया को सामाजिक दृष्टि से तथा मानवीय संरचना के अनुरूप बड़े ही सहजता से किया करते थे। इसलिये इन लीलाओं को देखकर इन कथाओं को श्रवण कर हमें भी अपने जीवन में यह सीख लेने की आवश्यकता है कि व्यक्ति का पद नहीं अपितु उसका आचरण संस्कार और संस्कृति ही उसे राम के सदृश्य महान बना सकती है। कली पावनावतार भगवान गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरित्र मानस की रचना करते समय हरेक उन सभी बिंदुओं को रखे हैं जिससे प्रत्यक्ष प्रतीत होता है कि कलिकाल में आज के दिनों में और आने वाले समय के लिये इससे बड़ा कोई भी आचार संहिता युक्त ग्रंथ हो ही नहीं सकता है। श्रीराम कथा के षष्ठम दिवस के कथाक्रम में महाराजश्री ने बताया कि भगवान श्रीराम अपने चार भाइयों के साथ गुरु ,माता – पिता , स्वजन की स्वेच्छा से राजा जनक की चारों पुत्रियों से विवाह की विधि पूर्ण किये। जिसमे राम के साथ सीता का , भरत के साथ मांडवी का , लक्ष्मण के साथ उर्मिला का तथा शत्रुघ्न के साथ श्रुतकीर्ति का विवाह संपन्न हुआ। परन्तु कालचक्र के विधि को एक ना एक दिन सबको स्वीकार करना होता है। इसलिये भगवान श्रीराम अयोध्या में आने के कुछ ही दिन बाद अपने पिता के वचन को पूर्ण करने के लिये तथा भक्तों के संग और भी गुह्य लीला के उद्देश्य से वन को निकल पड़े। जहां उन्होंने राक्षसों के वध करने के अलावा अनेक लीलायें भी की। इस संगीतमयी श्रीराम कथा में संगीत में  तबला पर पप्पू शुक्ला , आर्गन पर प्रमोद पांडेय और पैड पर पीयूष पांडेय का उल्लेखनीय योगदान रहा।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *