देश को डुबा और खुद तैर (व्यंग्य : विष्णु नागर)

— मान लीजिए श्रीमान, इस बार जनता आपसे कहे कि आप कुछ महीने बाद 74 के होकर 75 वें वर्ष में प्रवेश करने वाले हैं, […]

सारे धान पंसेरी के भाव मत तौलिये!(आलेख : बादल सरोज)

3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस था। पर कुछ गुणी और सुधी मित्रों की ऐसी टिप्पणियाँ दिखीं, जिनमें इन दिनों की पत्रकारिता का मखौल […]

अब एक चुनाव, एक उम्मीदवार!(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

मोदी जी ने क्या कुछ गलत कहा था? राहुल गांधी अमेठी से भागे हैं कि नहीं। अमेठी से भागकर बगल में रायबरेली में गए हैं, […]

पोलिंग बूथों पर इतना सन्नाटा क्यों है? (आलेख : बादल सरोज)

अभी नौतपा शुरू नहीं हुआ है – तब तक तो लू भी चलना शुरू नहीं हुई थी, मगर इसके बाद भी इतनी उच्च तीव्रता की […]