पुरी शंकराचार्य

अभिव्यञ्जक के अधीन अभिव्यंग्य की अभिव्यक्ति होने पर भी अभिव्यञ्जक से अभिव्यंग्य की भिन्नता अवश्य ही सिद्ध है।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *