
गरियाबंद/फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)। माना जाता हैं माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता हैं फाल्गुन और चैत्र मास बसंत ऋतु के लिए जाने जाते हैं थानू राम निषाद शिक्षक एवं साहित्यकार ने बताया 14 फरवरी बसंत ऋतु के रूप में मनाने का विधान है जिन्हें बसंत ऋतु के रूप में मनाईं जाती हैं इसका महत्व और भी विशेष हो जाता हैं आज के दिन ऋतुराज बसंत के आगमन के साथ विद्या की देवी मां सरस्वती जी की साधना अर्पित करने ज्ञान का महापर्व हैं। हमारे शास्त्रों में भगवती सरस्वती पूजा की आराधना का विशेष विधान के रूप में देखी जाती हैं इस दिन मां सरस्वती जी की मुर्ति स्थापित कर पूजन करने का रिवाज है मां सरस्वती का प्रिय रंग पीला है इसलिए उनकी मुर्तियों को पीले वस्त्र धारण कर पीले फुलों की माला पहनाकर विशेष रूप से श्रृंगार की जाती हैं लोग इस दिन विशेष रूप से पीले रंग के वस्त्र धारण कर इस उत्सव को बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक पूरे उमंग उत्साह के साथ मनाई जाती हैं बसंत पंचमी के आगमन के साथ प्रकृति को नवसृजित करती आम का मौर इस समय अपने पूरे शबाब पर होती हैं चारों तरफ मदमस्त हवाओं की पुरवाही आलौकिक छटा बिखेरती खेतों में चारों ओर खेतों में सरसों की पीले.पीले रंगों से सराबोर कोयल की मधुर ध्वनि से गुंजित चहुंओर प्रकृति का सबसे रमणीय रूप में देखा जाता हैं सोलह कलाओं से खिल उठने वाली प्रकृति सौंदर्य लुटाने वाली प्रकृति सभी को बर्बस अपनी सौंदर्य से सभी को लुभाती हैं।बसंत ऋतु के आगमन के साथ विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजन दिवस के साथ मातृ.पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जावेगा। माता. पिता के प्रति समर्पित आंस्थाए विश्वास एवं समर्पण का महान पर्व की रूप में देखी जाती हैं मां जिन्हें कुदरत का अनमोल अपनत्व की देवी के रूप में देखी जाती हैं वही पिता त्याग समर्पण के लिए जाना जाता हैं।जो हमें हमारे संकल्पों की याद दिलाते हुए हमें इस जहान में एक नई पहचान दिलाने में अपना पूरा जीवन संघर्षों में निकाल देते हैं।