ब्रेकिंग न्यूज: ‘मां अंबे’ के नाम पर राशन का महाघोटाला : फर्जी समिति, वास्तविक लूट – प्रशासनिक संरक्षण पर भी सवाल…

रायगढ (गंगा प्रकाश)। जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड में संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है। ‘मां अंबे महिला कल्याण समिति’ के नाम पर वर्षों से राशन वितरण का ठेका संचालित किया जा रहा था, जबकि समिति की न तो कोई वैधानिक संरचना है, न ही पंजीकृत कार्यालय, न कोई क्रियाशीलता। जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि यह समिति कागज़ों पर ही अस्तित्व में थी, और इसके माध्यम से बड़े पैमाने पर अनाज का उठाव कर काला बाज़ारी की गई।
फर्जी संस्था, असली लूटपाट :
आधिकारिक दस्तावेज़ों के अनुसार, उक्त संस्था के पास कोई वैध पंजीयन प्रमाणपत्र, संचालन समिति, बैंक विवरण अथवा कार्यालय का पता तक मौजूद नहीं है, फिर भी वर्षों से यह संस्था शासन की योजनाओं का लाभ उठाकर टनों राशन का आवंटन लेती रही। यह अनाज न तो हितग्राहियों तक पहुँचा, न ही उसका लेखा-जोखा कहीं दर्ज है।
‘महिला कल्याण समिति’ के नाम पर मातृशक्ति की अवमानना :
एक ओर शासन महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए योजनाएं चला रहा है, वहीं दूसरी ओर एक नकली महिला संस्था को संरक्षण देकर गरीबों की थाली से निवाला छीना गया। यह मामला न केवल आर्थिक अपराध है, बल्कि महिला सशक्तिकरण के मूल विचार की भी घोर अवहेलना है।
प्रशासनिक मिलीभगत की गंध :
सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले में कई प्रशासनिक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय रसूखदारों की संलिप्तता की आशंका है। सवाल यह है कि –
- जब समिति का पंजीकरण तक नहीं था, तो किस आधार पर उसे उचित मूल्य दुकान संचालन का जिम्मा दिया गया?
- किस अधिकारी ने सत्यापन किए बिना स्वीकृति दी?
- और इस घोटाले से किसे लाभ मिला?
FIR दर्ज, लेकिन क्या कार्रवाई प्रभावी होगी?…
वर्तमान में प्रकरण में एफआईआर दर्ज हो चुकी है और प्राथमिक जांच के आदेश दिए गए हैं। परंतु केवल संस्था के नाम पर कार्रवाई पर्याप्त नहीं, जब तक कि इस फर्जीवाड़े के पीछे बैठे बड़े खिलाड़ियों को बेनकाब न किया जाए। प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक संरक्षण की गहन जांच अब ज़रूरी हो गई है।
जनता का आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी :
धरमजयगढ़ की जनता इस खुलासे से आक्रोशित है। कई सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को जेल नहीं भेजा गया, तो गांव-गांव से आंदोलन की चिंगारी उठेगी।
न्याय की पुकार :
यह मामला न केवल एक आर्थिक अपराध है, बल्कि यह जन-आस्था, प्रशासनिक पारदर्शिता और सामाजिक न्याय पर सीधा प्रहार है। शासन से यह अपेक्षा है कि वह केवल खानापूर्ति न करे, बल्कि इस घोटाले में संलिप्त सभी चेहरों को उजागर कर कठोरतम कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करे।