Politics: छात्रवृत्ति पर भी राजनीति: तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी बच्चों के साथ अन्याय, 75% से बढ़ाकर 90% अंक की शर्त – कांग्रेस ने बताया जनविरोधी फैसला

सुरेंद्र वर्मा कांग्रेस बयान

Politics: छात्रवृत्ति पर भी राजनीति: तेंदूपत्ता संग्राहक आदिवासी बच्चों के साथ अन्याय, 75% से बढ़ाकर 90% अंक की शर्त – कांग्रेस ने बताया जनविरोधी फैसला

 

रायपुर (गंगा प्रकाश)। छात्रवृत्ति पर भी राजनीति: छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर आदिवासी हितों को लेकर घमासान छिड़ गया है। इस बार मुद्दा है — तेंदूपत्ता संग्राहकों के बच्चों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति योजना की पात्रता में किया गया चौंकाने वाला संशोधन। अब इस योजना का लाभ लेने के लिए विद्यार्थियों को 75 प्रतिशत के बजाय 90 प्रतिशत या उससे अधिक अंक लाने होंगे। इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है और इसे सीधे-सीधे गरीब और आदिवासी परिवारों के बच्चों के खिलाफ साजिश बताया है।

सुरेंद्र वर्मा कांग्रेस बयान

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने आज राजधानी रायपुर में प्रेस को संबोधित करते हुए भाजपा सरकार और राज्य वनोपज सहकारी संघ पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों के बच्चों के लिए शुरू की गई प्रतिभाशाली शिक्षा प्रोत्साहन योजना को जानबूझकर निष्क्रिय किया जा रहा है, जिससे हजारों छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति छिन जाए।

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क्या है विवादित फैसला?

दरअसल, छत्तीसगढ़ राज्य वनोपज सहकारी संघ ने शैक्षणिक सत्र 2024-25 से योजना की पात्रता में संशोधन करते हुए, अब केवल उन्हीं विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति देने की घोषणा की है जिन्होंने 10वीं या 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 90 प्रतिशत या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हों। पहले यह सीमा 75 प्रतिशत थी।

इस योजना के अंतर्गत 10वीं के विद्यार्थियों को 15,000 रुपये, और 12वीं पास करने वाले विद्यार्थियों को 25,000 रुपये की छात्रवृत्ति प्रदान की जाती थी। अब इस फैसले से हजारों विद्यार्थियों के सपनों पर पानी फिरने वाला है।

13.5 लाख तेंदूपत्ता संग्राहक परिवारों पर असर

छत्तीसगढ़ में लगभग 13 लाख 50 हजार तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी, गरीब और वनांचल में बसे हुए हैं। इन क्षेत्रों में शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं नगण्य हैं — स्कूलों में शिक्षकों की कमी, इंटरनेट और पुस्तकालय जैसी सुविधाओं का अभाव और आर्थिक तंगी की वजह से बच्चों के लिए पढ़ाई करना अपने-आप में एक संघर्ष है।

सुरेंद्र वर्मा कांग्रेस बयान

सुरेंद्र वर्मा ने कहा, “इन हालात में जब कोई बच्चा 75% अंक लाता है तो यह उसकी मेहनत और संघर्ष का प्रमाण होता है। लेकिन भाजपा सरकार का इरादा ही नहीं है कि गरीब आदिवासी बच्चा पढ़े। उन्हें शिक्षा से वंचित रखने के लिए इस तरह की योजनाओं में साजिशन बदलाव किया जा रहा है।”

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आदिवासी विरोधी कदमों की लंबी सूची

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने भाजपा की राज्य और केंद्र सरकारों के पिछले फैसलों को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जब आदिवासियों के हक छिने जा रहे हैं।

  • 1 अप्रैल 2019 से मोदी सरकार ने तेंदूपत्ता संग्राहक बीमा योजना में केंद्रांश बंद कर दिया।
  • साय सरकार ने सत्ता में आते ही कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई शहीद महेंद्र कर्मा तेंदूपत्ता संग्राहक बीमा योजना को भी बंद कर दिया।
  • वनांचल में संचालित गौठानों में वनोपज प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन के कार्य बाधित कर दिए गए।
  • वन उत्पादों की विपणन प्रणाली (मार्केटिंग नेटवर्क) को भी नष्ट करने का काम किया गया।

“बच्चों को शिक्षा से दूर रखना चाहती है भाजपा” – कांग्रेस

वर्मा ने कहा, “भाजपा सरकार नहीं चाहती कि तेंदूपत्ता तोड़ने वाला परिवार का बच्चा पढ़-लिखकर अधिकारी बने, शिक्षक बने या डॉक्टर बने। वे चाहते हैं कि ये पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूर ही रहें। यही वजह है कि छात्रवृत्ति की शर्तों को इस कदर सख्त कर दिया गया है कि गरीब बच्चे खुद-ब-खुद योजना से बाहर हो जाएं।”

राजनीतिक निहितार्थ और जनआक्रोश

इस फैसले से न केवल शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चे, बल्कि पूरे आदिवासी समाज में रोष व्याप्त है। कांग्रेस इसे आने वाले समय में जन आंदोलन का मुद्दा बनाने की तैयारी में है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शन, जन जागरूकता अभियान और हस्ताक्षर अभियान शुरू किए जाएंगे।

वहीं भाजपा की ओर से अभी तक इस मामले में कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन शिक्षा नीति में इस तरह का बदलाव, वह भी कमजोर तबकों के लिए लागू योजना में, एक संवेदनहीन प्रशासनिक रवैये का उदाहरण माना जा रहा है।

सुरेंद्र वर्मा कांग्रेस बयान

क्या पीछे हटेगी सरकार?

राज्य सरकार पर अब दबाव बढ़ता जा रहा है। एक ओर कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बना रही है, वहीं छात्र संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आदिवासी संगठनों ने भी सरकार के इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। आने वाले दिनों में अगर यह फैसला वापस नहीं लिया गया, तो यह एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक विवाद का रूप ले सकता है।

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