CG: ग्राम कसेरु के ग्रामीणों ने रच दिया इतिहास: बिना सरकारी मदद अपने निस्तारी तालाब की कर डाली सफाई, पेश की जनसहभागिता की मिसाल

जनसहभागिता की मिसाल

CG: ग्राम कसेरु के ग्रामीणों ने रच दिया इतिहास: बिना सरकारी मदद अपने निस्तारी तालाब की कर डाली सफाई, पेश की जनसहभागिता की मिसाल

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। ग्राम कसेरु के ग्रामीणों ने रच दिया इतिहास: जब देश के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र सरकार की ओर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं, उस वक्त गरियाबंद जिले के एक छोटे से आदिवासी बहुल गांव कसेरु ने ऐसा काम कर दिखाया है जो पूरे राज्य के लिए मिसाल बन गया है। इस गांव के लोगों ने अपने प्रमुख निस्तारी तालाब की पूरी सफाई बिना किसी सरकारी सहायता के स्वयं की, और यह कर दिखाया कि अगर जनता जागरूक हो, तो विकास की नींव खुद गांवों में ही रखी जा सकती है।

जनसहभागिता की मिसाल

गांव का जीवनरेखा है यह तालाब

ग्राम कसेरु का यह तालाब वर्षों से गांव के लोगों की जीवनरेखा रहा है। पीने का पानी, निस्तारी, पशुपालन, और खेती-बाड़ी तक इसी पर निर्भर है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से इसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी। पानी की गहराई कम हो गई थी, चारों ओर झाड़-झंखाड़ उग आए थे, और जल निकासी के रास्ते पूरी तरह अवरुद्ध हो चुके थे।

तालाब की यह हालत देख गांव के बुजुर्गों और युवाओं ने मिलकर ठान लिया कि अब सरकार या किसी योजना का इंतजार नहीं किया जाएगा — तालाब हमारा है, तो जिम्मेदारी भी हमारी ही है।

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एकजुटता का उदाहरण बना श्रमदान

तय दिन पर गांव भर में संदेश दिया गया। अगली सुबह जब सूरज उगा, तो महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और किशोर सभी हाथों में फावड़ा, तगारी और झाड़ू लेकर तालाब की ओर निकल पड़े। किसी ने गाद निकाली, किसी ने झाड़ियां काटी, तो कोई पानी की निकासी के लिए नालियों की मरम्मत में जुटा था।

गांव की महिलाएं कमर तक कीचड़ में उतर कर सफाई में लगीं, और किशोरों ने बारी-बारी से गाद उठाकर बाहर फेंका। पूरा माहौल मानो एक पर्व जैसा हो गया था — कोई शिकायत नहीं, कोई आलस नहीं। बस सेवा और समर्पण की भावना।

ग्राम कसेरु तालाब सफाई

साफ हुआ तालाब, जगा आत्मविश्वास

सफाई के बाद तालाब की स्थिति पहले से कहीं बेहतर हो गई है। गहराई बढ़ गई है, जल शुद्ध हुआ है और बरसात के पानी का बहाव भी अब रुकावट रहित हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि अब यह तालाब फिर से गांव की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो गया है।

गांव की महिला मीना बाई कहती हैं, “हम हमेशा कहते थे कि सरकार कुछ करे, लेकिन इस बार हमने खुद कर दिखाया। अब लगता है कि अगर हम चाहें तो अपना गांव खुद बदल सकते हैं।”

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प्रशासन को दिया संदेश, सहयोग की जताई उम्मीद

गांव के स्थानीय पत्रकार और जागरूक नागरिक मोती राम पटेल ने बताया कि अगर शासन-प्रशासन इस प्रयास को देखे और थोड़ा सहयोग करे तो यह तालाब केवल जल स्रोत ही नहीं, बल्कि एक सुंदर, विकसित सार्वजनिक स्थल बन सकता है।

वे कहते हैं, “अगर घाट बना दिया जाए, पौधारोपण कर दिया जाए, बैठने की व्यवस्था हो, तो यह तालाब सिर्फ पानी देने वाला नहीं रहेगा — यह पर्यावरण शिक्षा का केंद्र बन सकता है।”

निस्तारी तालाब श्रमदान

आसपास के गांवों ने लिया प्रेरणा, कसेरु बना मॉडल

कसेरु की यह खबर अब आसपास के गांवों में फैल रही है। कई गांवों के सरपंच और युवा अब कसेरु आकर यह देखने लगे हैं कि कैसे बिना बजट, बिना योजना, केवल जनइच्छाशक्ति से बदलाव लाया जा सकता है।

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कागज़ों से ज़मीन तक: असली विकास की परिभाषा

सरकारी योजनाएं अक्सर कागजों पर बनती हैं और वहीं सीमित भी रह जाती हैं। लेकिन कसेरु जैसे गांव ये बता रहे हैं कि असली विकास वही है जो जनता की भागीदारी से, धरातल पर हो। कसेरु का यह उदाहरण केवल एक तालाब की सफाई नहीं, बल्कि गांव के आत्मविश्वास, स्वाभिमान और जागरूकता की जीत है।

क्या कहता है प्रशासन?

हालांकि अभी तक इस अभियान पर किसी बड़े अधिकारी की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि जिला प्रशासन इस जन-सशक्तिकरण के प्रयास को मान्यता देगा और भविष्य में विकास कार्यों में प्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करेगा।

ग्रामीण चेतना की नई सुबह

ग्राम कसेरु ने यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षा केवल स्कूलों में नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी और भागीदारी से भी मिलती है। यहां के ग्रामीणों ने आने वाली पीढ़ियों के लिए न केवल एक साफ तालाब छोड़ा है, बल्कि यह सिखाया है कि परिवर्तन सरकार नहीं, समाज लाता है।

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