CG: पाली जनपद पंचायत में भ्रष्टाचार का महाघोटाला – चुनावी और सुशासन तिहार खर्च के नाम पर सीईओ ने वसूले लाखों, अब पैसे लौटाएगा कौन?

कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। पाली जनपद पंचायत में तैनात सीईओ भूपेंद्र सोनवानी का नाम अब भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के सबसे बड़े उदाहरणों में शुमार किया जा रहा है। उनके कार्यकाल में 93 ग्राम पंचायतों में से करीब 70 प्रतिशत पंचायतों से जबरन लाखों रुपये की वसूली का मामला सामने आया है। आरोप है कि पंचायत मद से चुनावी खर्च 15 हजार और सुशासन तिहार खर्च 25 हजार, इस प्रकार 40-40 हजार रुपये की वसूली पंचायतों से कराई गई है। पंचायत प्रतिनिधियों और सचिवों ने डर और दबाव में यह रकम पंचायत मद से भुगतान की।

पैसे की उगाही का पूरा खेल
जानकारी के अनुसार, पाली जनपद के सीईओ सोनवानी ने चुनावी खर्च और सुशासन तिहार जैसे आयोजनों के लिए पंचायतों पर सीधा आर्थिक बोझ डाल दिया। पंचायतों को कहा गया कि वे 15,000 रुपये चुनाव खर्च और 25,000 रुपये सुशासन तिहार के लिए तत्काल दें। यह रकम किसी भी सरकारी आदेश के बिना सीधे पंचायत मद से कटवा ली गई।
सरपंच-सचिवों का कहना है कि “सीईओ ने साफ कह दिया था कि पैसे देना ही होंगे, चाहे पंचायत की योजनाएं रुके या गांव का विकास काम ठप पड़े।”
कमीशनखोरी की लंबी फेहरिस्त
यह कोई पहला मामला नहीं है। सीईओ भूपेंद्र सोनवानी पर पहले भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं, जिनमें शामिल हैं:
- 15वें वित्त आयोग की राशि जारी करने के एवज में भारी-भरकम कमीशन की मांग।
- निर्माण कार्यों की तकनीकी स्वीकृति भेजने के लिए 7-8 प्रतिशत कमीशन निर्धारित।
- पंचायतों में अघोषित ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा, जिससे ग्राम पंचायतें अपनी मर्ज़ी से ठेकेदार नियुक्त नहीं कर पातीं।
- पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय रोककर मानसिक दबाव बनाना, ताकि उनकी हर अवैध मांग पूरी की जा सके।
अब सवाल – पैसे वापस कौन करेगा?
जब यह मामला उजागर हुआ और मीडिया में प्रमुखता से छपा, तब जाकर यह अवैध वसूली रुक पाई। मगर सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि पंचायत मद से जो रकम काट ली गई, उसकी वापसी आखिर कौन करेगा? यदि भविष्य में इस भुगतान को लेकर ऑडिट या विभागीय जांच होती है, तो नियमविपरीत भुगतान का जिम्मेदार कौन होगा?
क्या सचिव और सरपंचों पर कार्रवाई होगी, जिन्होंने डर के मारे सीईओ के कहने पर पैसे दिए, या सीईओ खुद दोषी ठहराए जाएंगे? फिलहाल पंचायत प्रतिनिधि इस चिंता से त्रस्त हैं, क्योंकि पंचायती राज अधिनियम और वित्तीय प्रावधानों के अनुसार पंचायत मद का पैसा केवल गांव के विकास कार्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है, चुनावी प्रचार या प्रशासनिक आयोजनों के लिए नहीं।
शासन-प्रशासन की चुप्पी – भ्रष्टाचार को संरक्षण?
सबसे गंभीर सवाल शासन-प्रशासन की चुप्पी को लेकर है। जनपद कार्यालय से लेकर जिला पंचायत तक सबको इस मामले की जानकारी है, लेकिन अब तक सीईओ के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
पंचायत प्रतिनिधियों का कहना है कि यदि यही स्थिति रही, तो पंचायतें पूरी तरह कर्ज और अव्यवस्था में डूब जाएंगी, क्योंकि पहले ही 15वें वित्त की राशि में कमीशन, निर्माण में कमीशन, मटेरियल सप्लायर से कमीशन जैसे खेलों से विकास की गति रुक गई है। रही-सही कसर चुनाव और सुशासन तिहार के नाम पर वसूली ने पूरी कर दी।
‘दूध का धुला’ बताने की कोशिश
वहीं, दूसरी ओर सीईओ भूपेंद्र सोनवानी खुद को ‘दूध का धुला’ अधिकारी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका दावा है कि सभी कार्य नियमों के अनुरूप हैं और उन्होंने कोई वसूली नहीं की। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों और स्थानीय प्रशासन के बीच चर्चाओं में उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
कुछ पंचायत प्रतिनिधियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि –
“सोनवानी साहब बिना कमीशन के एक भी फाइल आगे नहीं बढ़ाते। अगर कोई सरपंच कमीशन नहीं दे पाया, तो उसकी पंचायत में कोई निर्माण कार्य ही नहीं होगा।”
‘अंधेर नगरी-चौपट राजा’ जैसा माहौल
जनपद कार्यालय में बैठे कर्मचारियों और सचिवों का कहना है कि “पाली जनपद में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं बची। हर जगह कमीशन, अवैध वसूली और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। यह हाल रहा तो आने वाले समय में पंचायतों का विकास सपना बनकर रह जाएगा।”
पंचायतों की मांग – कड़ी कार्रवाई हो
इस पूरे मामले में पाली जनपद के पंचायत प्रतिनिधियों ने शासन-प्रशासन से मांग की है कि सीईओ भूपेंद्र सोनवानी पर तत्काल कार्रवाई की जाए, ताकि पंचायत मद का पैसा सुरक्षित रह सके और गांव के विकास में उपयोग हो सके। यदि शीघ्र कदम नहीं उठाए गए, तो पंचायत प्रतिनिधि बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं।
ग्राम पंचायतों का कहना है कि वे लड़ाई न्याय के लिए लड़ेंगे, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी पंचायतों के विकास का पैसा अपनी मनमानी से खर्च न कर सके।