
अरविन्द तिवारी
जांजगीर चांपा (गंगा प्रकाश)- कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को आंवला नवमी का पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता हैं। पौराणिक मान्यता हैं कि आंवला नवमी के दिन व्रत रखने या फ़िर आंवला पेड़ के पूजन-अर्चन करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं और कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा भी कथा दृष्टांत हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओं को छोड़कर इसी दिन अपनी जिम्मेदारियों को जाना व समझा था और मथुरा का त्याग किया था।इसीलिये इस दिन को आंवला नवमी के दिन के रुप में स्मरण किया जाता हैं । महर्षि च्यवन ऋषि इस दिन आशिर्वाद प्राप्त कर युवा हो गये।साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि आंवला नवमी के अवसर पर कोसा कांसा एवं कंचन की नगरी चांपा के हसदेव सरिता के तट पर स्थित मुख्य पर्यटन स्थल हनुमान धारा व केराझरिया के पिकनिक स्पॉट पर दिन भर सैलानियों की भीड़-भाड़ रही। अक्षय नवमी और कार्तिक मास के पूर्णिमा तिथि को इस स्थल पर मेला लगता हैं , जिसमें बड़ी संख्या में आसपास के लोग और सैलानी उमड़ते हैं । इस स्थल पर एक दिवसीय वनभोज और पिकनिक मनाने के लिये पहुंचे। महादेवी महिला रत्न से विभूषित पूर्व पार्षद श्रीमति शशिप्रभा सोनी , शिक्षिका श्रीमति शांति थवाईत , शिक्षिका भुवनेश्वरी देवी , भाजपा नेत्री श्रीमती संगीता पाण्डेय एवं केसरवानी महिला मंडल की अध्यक्षा श्रीमती शांता गुप्ता ने भी आज़ अपने घर आंगन में बनाये गये मंदिर के सामने आंवले का पौधा रखकर विधि-विधान से सपरिवार पूजा-अर्चना किया तथा घर में तैयार व्यंजनों को रखकर सुस्वादु भोजन किया। जुडुवा बहने सुश्री दिव्या और नव्या केशरवानी ने भी भक्तिभाव से युक्त होकर आंवले की पूजा की। इस अवसर पर विशेष से आमंत्रित श्रीमद्भागवत कथा प्रवक्ता एवं प्रकांड विद्वान , ओजस्वी वक्ता पंडित शीतल प्रसाद द्विवेदी ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल की नवमी तिथि को भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में साक्षात् विराजमान रहते हैं। श्रद्धा भक्तिपूर्वक घर हो या फिर बाहर विधि-विधान से आंवला पेड़ के पूजा करने या फिर आंवला पेड़ के नीचे बैठकर अन्न प्रसाद ग्रहण करने से शुभ फल की प्राप्ति होती हैं । मनुष्य को जीवन भर पारिवारिक एवं संतान सुख के साथ परिवार की आरोग्यता तथा दीघार्यु की प्राप्ति होती हैं । साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि आंवला ही एक ऐसा आयुर्वेदिक फल हैं , जिसमें सब तरह के रस विद्यमान होते हैं । इसमें गैलिक एसिड ,एलाइजिक एसिड , ग्लूकोज और विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। यह स्वाद में कसैला और खट्टा होता हैं और कभी-कभी मीठा हैं तो नमकीन भी होता हैं । इसका कच्चा फल हरा और पकने के पश्चात् पीले रंग का हो जाता हैं । उन्होंने बताया कि आंवले का भारतीय सनातन संस्कृति में महत्तम इतना हैं कि दीपावली के कुछ दिनों बाद ही आंवला नवमी मनाई जाती हैं। यह बुद्धिवर्धक , नेत्र ज्योतिवर्धक और रक्त नाशक औषधि के रुप में गुणकारी हैं। आंवले के पेड़ पर भगवान श्रीविष्णु विराजमान रहते हैं। आंवला नवमी के दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना के बाद 108-बार परिक्रमा करने से मनोवांछित कामनायें पूर्ण होती हैं। गृहणी एवं सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमति सत्यभामा साव ने बताया कि आंवला बहु उपयोगी और आयुर्वेदिक फल हैं। यह साबुत हो या कटा हुआ हर दृष्टिकोण से फायदेमंद हैं। आजकल के बच्चों और घर-परिवार के सदस्यों को इसके बारे में तथ्यपरक जानकारी देने की आवश्यकता हैं और जहां तक हो सके गृहणियों को भोजन विशेषकर सब्जियों में परिवार के लोगों को इसका सेवन कराना चाहिये चाहे आंवला साबुत रुप में हो या अचार के रुप में सेवन फायदेमंद हैं।