
पदस्थ डॉक्टर महीनों से अनुपस्थित- नहीं होता औचक निरीक्षण
डोंगरगांव (गंगा प्रकाश)।शहर का सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र आज भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. जहाँ शासन-प्रशासन व्दारा भवन और उपकरण से अस्पताल को सुसज्जित किया जा रहा है, वहीं ब्लॉक मुख्यालय के इस अस्पताल के नये बिल्डिंग में आज पर्यन्त डॉक्टरों की पूर्ति नहीं की जा सकी है. इसके साथ ही अनेक पद स्वीकृत होने के बावजूद अब तक नहीं भरे जा सके हैं जबकि कुछ पदों को संविदा के भरोसे चलाया जा रहा है.
डोंगरगांव के इस अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण पद खण्ड चिकित्सा अधिकारी का है जो कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते कई वर्षों से भरा ही नहीं गया और प्रभारियों के भरोसे पूरे अस्पताल का संचालन किया जा रहा है. ऐसे में अस्पताल की चरमराई व्यवस्थाओं का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है. चिकित्सा अधिकारी के दो पद स्वीकृत हैं जिसमें एक पद अब तक खाली है जबकि एक पद में डॉ.रागिनी चन्द्रे हैं जो कि प्रभारी खंड चिकित्सा अधिकारी का पद भी संभालती हैं. इसी प्रकार विशेषज्ञ मेडिसिन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जरी विशेषज्ञ, पीजीएमओ निश्चेतना, अस्थि रोग विशेषज्ञ जैसे महत्वपूर्ण पद वर्षों से खाली पड़े हैं. कई वर्षों बाद शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में डॉ.हिमांशु नामदेव पहुंचे हैं. डॉक्टर और विशेषज्ञों के अलावा स्टॉफ नर्स 2 पद रिक्त हैं, फार्मासिस्ट के दो पदों में एक खाली है. अस्पताल में मरीजों को एक स्थल से दूसरे स्थल पहुंचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पद वाहन चालक के दोनों पर वर्तमान में रिक्त पड़े हैं. इसी प्रकार नान मेडिकल सुपरवाइजर, एन.एम.ए., ओटी अटेन्डेन्ट, ड्रेसर ग्रेड-2, धोबी जैसे पद भी खाली पड़े हैं जो कि अस्पताल संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
अनुबंधित डॉक्टरों की नहीं होती मानिटरिंग
ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को अनवरत चलाने के लिए पी.जी. एवं एमबीबीएस अनुबंधित मेडिकल छात्र/छात्राओं व्दारा एक बार पदांकित पदस्थापना स्थल में दो वर्षों की सेवा देनी होती है लेकिन ज्वानिंग के पश्चात किसी अधिकारी व्दारा इनकी सुध तक नहीं ली जाती जबकि नियमानुसार कोई मेडिकल छात्र/छात्रा इस दौरान एक माह से अधिक अनुपस्थिति पर बांड की संपूर्ण राशि वसूली किये जाने के साथ ही मेडिकल कौंसिल से पंजीयन रद्द करने तक की कार्यवाही की जा सकती है. डोंगरगांव अस्पताल में भी एक डॉक्टर विजय मेश्राम ड्युटी ज्वाईन करने के बाद गत 10 माह से अनुपस्थित हैं और इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों तक है किन्तु कार्यवाही करने के नाम पर सभी जानकर अंजान बने हुए हैं. जिम्मेदार पद होने की वजह से उनकी अनुपस्थिति में अन्य डॉक्टरों को अधिक समय ड्यूटी करना होता है जो कि उन्हें हतोत्साहित करता है.
सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों का टोंटा
डॉक्टरों के लिए तरस रहे डोंगरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में एक समय काफी नामचीन विशेषज्ञ डॉक्टर भी हुए है, जिनके कार्यकाल में अनेक बड़़े ऑपरेशन भी सम्पन्न हुए हैं. केवल नब्ज टटोल कर मरीज की सारी बीमारियों को पहचानने वाले डॉक्टरों की भी कमी नहीं रही है किन्तु विगत कई वर्षों से डोंगरगांव सरकारी अस्पताल केवल रिफर सेंटर बनकर रह गया है. सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में पदस्थ डॉक्टरों का मुख्यालय में नहीं रहना भी मरीजों के लिए परेशानी का सबब है. डॉक्टरों के मुख्यालय में रहने से छोटी मोटी समस्याओं के लिए मरीज को राजनांदगांव रिफर नहीं किया जायेगा जिससे गरीब मरीजों की जान से लेकर समय और पैसे की भी बचत होगी लेकिन जिला मुख्यालय में बैठे अधिकारी डॉक्टरों की सुध लेने औचक निरीक्षण ही कर ले तो काफी हद तक सुधार आ जाये.
अधिकारी की नहीं सुनते अधिनस्थ कर्मचारी
डोंगरगांव का अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह से बदहाल स्थिति में पहुंच चुका है। जहां अपने अधिकारियों की ही बात को उनके अधिनस्थ कर्मचारी टालते नजर आते हैं। जिसका कारण है पावर, पहुंच, संरक्षण और राजनीती,कार्यवाही करे तो पावर और पहुंच का रौब दिखाकर दबाव बनाते हैं। इन सब के पीछे शहर की ओछी राजनीति बड़ी बाधा बनी हुई है। पता नहीं इनसब से निजाद कब मिलेगा यंहा का स्टाफ ड्यूटी के नाम पर सिर्फ तनख्वाह पकाने आते है।
स्टाफ की बदसलुकी से लोगो को पहुँचता है ठेस
अस्पताल की प्रबंधन तो बदहाल है ही साथ ही यंहा के ड्यूटी स्टाफ किसी भी मरीज़ और उसके परिजनो से सलिके से बात भी करना जरूरी नहीं समझते, यंहा इलाज़ के नाम पर तो सिर्फ दिखावा ही होता है और अगर कुछ किया भी जाये तो मरीजों के इलाज़ को उनके ऊपर किये गए अहसान की तरह बात किया जाता है। प्रबंधन का रव्वैया देख मरीज़ और परिजनों की तकलीफ और बढ़ जाती है।
आयुर्वेदिक अस्पताल कोने में संचालित
शहर के पुराने अस्पताल के एक कोने में आयुर्वेदिक अस्पताल संचालित है. पुराना अस्पताल का पूरा भवन अब पूरी तरह से खाली हो चुका है, जहाँ आयुर्वेदिक अस्पताल को संचालित किया जा सकता है. अस्पताल सामने होने से और भी अधिक मरीजों को इसका लाभ मिल सकेगा. मरीजों की शिकायत है कि यहाँ पदस्थ डॉक्टर भी सुबह की ड्यूटी करने के बाद शाम को कभी नहीं मिलते जबकि वर्तमान नियमों के अनुसार अस्पताल को सुबह और शाम दोनों समय खोला जाना है. इसी पुराने अस्पताल भवन में विगत माह से फिजिओथेरेपी प्रारंभ किया गया है, जिसे डॉक्टरों की सलाह पर इसका लाभ लिया जा सकता है.
डोंगरगांव अस्पताल प्रबंधन के रवैय्ये के कारण डोंगरगांव अस्पताल की छवि धूमिल है मरीज़ डोंगरगांव अस्पताल मे इलाज़ कराने से कतराते है और लोगो को प्राइवेट अस्पताल का रुख करना पड़ता है और मोटे पैसो के खर्च के बाद अपने परिजनों का इलाज़ कराना पड़ता है।ऐसा ना हो की कुछ समय बाद लोग डोंगरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आना ही बंद कर दे।