
(स्थापना दिवस विशेष)
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर (गंगा प्रकाश)। आज भारत की जनसंख्या में लगभग आधी आबादी युवाओं की है। युवा वर्ग के पास शिक्षा , हुनर , कला , श्रमशक्ति उपलब्ध है किन्तु उनको सही मार्ग नहीं दिखता कि इन योग्यताओं का वह स्वयं , परिवार , समाज एवं राष्ट्र के उत्कर्ष के लिये किस प्रकार उपयोगिता सिद्ध करें। ऐसी अवस्था में यदि युवा वर्ग श्रीगोवर्धन मठ पुरी के प्रकल्प आदित्यवाहिनी के संयोजन के मूल भावना को समझकर इससे जुड़ता है तो स्वयं स्वावलंबी व सुबुद्ध बनकर अन्यों के लिये भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
उक्त बातें अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज द्वारा संस्थापित संगठन आदित्यवाहिनी के छत्तीसगढ़ प्रदेशाध्यक्ष टीकाराम साहू ने आज संगठन के स्थापना दिवस पर श्री सुदर्शन संस्थानम में प्रेस से मिलिये कार्यक्रम में अरविन्द तिवारी से चर्चा करते हुये कही। श्रीगोवर्धन मठ पुरी क्या है और इसके प्रकल्प आदित्यवाहिनी से जुड़कर हम कैसे अपने लौकिक और पारलौकिक उद्देश्यों को प्राप्त कर सकेंगे ? इस सवाल का जवाब देते हुये प्रदेशाध्यक्ष साहू ने बताया कि ईसा से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भगवान आदि शंकराचार्यजी महाभाग का प्रादुर्भाव हुआ था। तात्कालिन बौद्ध धर्म की बहुलता के समय उन्होंने सनातन धर्म को पुनर्स्थापित किया था तथा अपने जीवन काल में सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिये सम्पूर्ण भारतवर्ष को चार भागों में विभक्त करके अपने चिन्मय करकमलों द्वारा चार मान्य पीठ की स्थापना करके अपने प्रमुख शिष्यों को शंकराचार्य के पद पर आरूढ़ कराया था , तब से इन चारों मान्य पीठों में शंकराचार्य परंपरा चली आ रही है। भारत के पूर्वी भाग पुरी उड़ीसा में स्थित श्रीगोवर्धन मठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मान्य पीठों में से एक है। वर्तमान में ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरी में श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी पीठ के 145 वें शंकराचार्य के रूप में विराजमान हैं। वर्तमान शंकराचार्यजी इस पद पर प्रतिष्ठित होने के पूर्व धर्मसम्राट स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज के दीक्षित शिष्य होकर उनसे धर्म , अध्यात्म , गोरक्षा , राष्ट्र रक्षा , व्यासपीठ एवं शासनतन्त्र का शोधन आदि विषयों पर कार्य हेतु आशीर्वाद प्राप्त किया। स्वामी श्रीकरपात्री जी ने राजसत्ता के शोधन हेतु रामराज्य परिषद का गठन किया था , उन्हीं के प्रेरणास्वरूप समाज के सभी धर्मप्रेमी , राष्ट्रप्रेमी महानुभावों को एक संगठन के रूप में मंच प्रदान करने के पावन उद्देश्य से वर्तमान पुरी शंकराचार्यजी ने धर्मसंघ पीठ परिषद् की स्थापना की है। धर्मसंघ पीठ परिषद् के अंतर्गत आदित्यवाहिनी , आनन्दवाहिनी , राष्ट्रोत्कर्ष समिति , हिन्दू राष्ट्रसंघ , सनातन सन्त समिति कार्य करती है। पांच से चौदह वर्ष तक के बालक बाल आदित्यवाहिनी , चौदह से पैंतालीस वर्ष तक के युवक आदित्यवाहिनी तथा उसके ऊपर के आयु के सज्जन पीठ परिषद के सदस्य होते हैं। ठीक इसी प्रकार पांच से चौदह वर्ष तक की आयु की बालिका बाल आनन्दवाहिनी के सदस्य तथा चौदह से लेकर पैंतालीस वर्ष तक की मातृशक्ति आनन्दवाहिनी की सदस्या होती है। धर्मसंघ पीठ परिषद , आनन्दवाहिनी और इनसे संबद्ध संगठन प्रेरकमंडल , मार्गदर्शकमंडल का कार्य करते हैं , युवा शक्ति आदित्य वाहिनी का कार्य होता हैं। आदित्य वाहिनी के छत्तीसगढ़ प्रदेशाध्यक्ष ने आगे बताया कि पूज्यपाद पुरी शंकराचार्यजी के संदेशों के अनुसार संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिये धर्म ,अध्यात्म , राष्ट्र रक्षा के साथ साथ स्वयं के लौकिक पारलौकिक उत्कर्ष की भावना से स्वयं को प्रस्तुत करना है। संस्था के उद्देश्यों के बारे में पूछे जाने पर टीकाराम साहू ने बताया कि अन्यों के हित का ध्यान रखते हुये हिन्दुओं के अस्तित्व एवं आदर्श की रक्षा , देश की एकता , अखण्डता तथा सुरक्षा के लिये कार्य करना। आदित्यवाहिनी से जुड़कर उपरोक्तानुसार कार्य कैसे करें ? इस सवाल पर उन्होंने बताया कि किसी पुनीत कार्य , समष्टि कार्य को करने के लिये आत्मबल आवश्यक है , इसको प्राप्त करने के लिये प्रतिदिन लगभग सवा घंटे की उपासना की आवश्यकता है जो कि पंद्रह – पंद्रह मिनट के रूप में प्रात: , स्नानोपरांत , दोपहर , सायं एवं रात्रि को किया जा सकता है। आत्मबल से युक्त आदित्यवाहिनी के सदस्य सांगठनिक रूप में कार्य करें क्योंकि इस कलिकाल में संगठन में ही शक्ति निहित होती है। कैसे व क्या कार्य करना है ? पूछे जाने पर प्रदेशाध्यक्ष साहू ने बताया कि प्रतिदिन प्रत्येक हिन्दू परिवार से एक रूपया एकत्रित कर एवं एक घंटा समयदान , श्रमदान के रूप में देकर उस क्षेत्र को सनातन मानबिन्दुओं के अनुरूप स्वावलंबी , समृद्ध , सुबुद्ध बनाने का कार्य करना है। इससे एकत्रित राशि का उपयोग एवं श्रमदान उसी क्षेत्र में प्रकृति संरक्षण , नदी – नालों व तालाबों का संरक्षण एवं निर्मलीकरण , वृक्षारोपण , देसी गोवंश संरक्षण , मठ – मंदिरों का जीर्णोद्धार , रखरखाव , क्षेत्रवासियों को स्वरोजकार प्रदान करने एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिये क्षेत्रीय आवश्यकतानुसार कुटीर उद्योगों के लिये प्रशिक्षण की व्यवस्था , संगोष्ठी के माध्यम से सनातन संस्कृति अनुरूप संयुक्त परिवार की आवश्यकता पर जनजागरण तदानुसार कुलदेवी , कुलदेवता , कुलगुरू , कुलपरंपरा का महत्त्व प्रतिपादित करना , नैतिक शिक्षा के माध्यम से बच्चों में प्रारंभ से ही संस्कार स्थापित करना , प्रतिभाओं के लिये खेलकूद , सांस्कृतिक , आध्यात्मिक गतिविधि का आयोजन कराना , स्वास्थ्य परीक्षण , निर्धन , असहाय , दिव्यांग की सहायता की भावना जैसे अनेक प्रकल्प संभव हो सकते हैं। प्रत्येक सप्ताह सभी की सुविधा की दृष्टि से समय निर्धारित कर मठ मंदिर या सार्वजनिक स्थान पर सामूहिक संकीर्तन का आयोजन इससे संगठन के सभी सदस्यों का आपस में मेल-मिलाप होगा , भगवत भजन से आध्यात्मिक बल मिलेगा। सामयिक विषयों पर चर्चा तथा भावी क्रियान्वयन के लिये चर्चा भी की जा सकती है। अंत में आदित्यवाहिनी छत्तीसगढ़ के प्रदेशाध्यक्ष टीकाराम साहू ने मीडिया के माध्यम से सभी युवाओं को आदित्यवाहिनी से जुड़कर पुरी शंकराचार्यजी के मार्गदर्शन में संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप कार्य करते हुये अपना जीवन सफल बनाने की अपील की है।