भांठीगढ़ का रीपा सेंटर – करोड़ों की लागत से बना रोजगार केंद्र बना वीरान, अब शराबियों का अड्डा

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने की मंशा से शुरू किया गया भांठीगढ़ का रीपा (RIPA) सेंटर आज खुद उपेक्षा और बदहाली की भेंट चढ़ चुका है। करोड़ों की लागत से बने इस सेंटर में न तो कोई गतिविधि बची है और न ही कोई निगरानी। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि अब यह केंद्र असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है।

8–9 महीनों से बंद पड़ा है सेंटर
स्थानीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार यह सेंटर पिछले लगभग 8–9 महीनों से पूरी तरह से बंद पड़ा हुआ है। न कोई अधिकारी आता है, न किसी महिला समूह की उपस्थिति है। ग्रामीणों ने बताया कि शुरू में कुछ महिलाओं को जोड़ने का प्रयास किया गया था, लेकिन गतिविधियां अधिक दिन नहीं चल सकीं।
भवन हो रहा जर्जर, दरवाजे खुले
हमारे संवाददाता जब मौके पर पहुंचे तो देखा कि सेंटर का मुख्य गेट खुला हुआ था और कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। भवन की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। दीवारों में दरारें और खिड़कियों के टूटे कांच यह दर्शाते हैं कि इसकी देखरेख बिल्कुल नहीं हो रही।
शराबियों का अड्डा बन गया सेंटर
सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि यह सेंटर अब शराबियों का अड्डा बन चुका है। भवन के अंदर और आसपास बड़ी संख्या में शराब की खाली बोतलें पड़ी थीं। इससे साफ है कि यहां अब असामाजिक तत्वों का जमावड़ा होने लगा है, जिससे स्थानीय महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर भी सवाल उठते हैं।
10 लाख का भंडारण कक्ष भी टूट-फूट का शिकार
रीपा सेंटर में बने 10 लाख रुपए की लागत से तैयार भंडारण कक्ष की हालत भी खराब हो चुकी है। शरारती तत्वों ने इसके कांच तोड़ दिए हैं और अंदर की स्थिति अस्त-व्यस्त है। यह कक्ष महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों के सुरक्षित भंडारण के लिए बनाया गया था।
अधूरे भवन और अधूरी व्यवस्था
सेंटर में बने कई भवन जैसे स्टाफ रूम, पैकेजिंग यूनिट, शौचालय आदि अभी तक अधूरे पड़े हैं। निर्माण सामग्री फैली हुई है और साफ है कि कार्य अधूरा छोड़ दिया गया। वहीं, ट्रांसफार्मर और बोरवेल की भी व्यवस्था की गई थी, लेकिन अब वे भी अनुपयोगी हो चुके हैं।
फेसिंग के बावजूद असुरक्षित परिसर
पूरा परिसर फेसिंग पोल से घेरा गया है, लेकिन गेट खुला रहने और निगरानी के अभाव में यह पूरी तरह असुरक्षित बन गया है। कोई भी व्यक्ति जब चाहे भीतर प्रवेश कर सकता है।
महिलाओं की उम्मीद टूटी
इस सेंटर के शुरू होने से ग्रामीण महिलाओं में रोजगार को लेकर बड़ी उम्मीद जगी थी। उन्हें लगा था कि अब स्थानीय स्तर पर कार्य मिलेगा और परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। लेकिन अब यह उम्मीद भी टूट चुकी है।
सरकारी धन का भारी दुरुपयोग
इस परियोजना पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन अब सब बेकार होता नजर आ रहा है। सरकार की मंशा अच्छी थी, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की कमी के कारण यह योजना असफल होती दिख रही है।
क्या कहता है प्रशासन?
- इस पूरे मामले में अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा?
- क्या कोई जिम्मेदार अधिकारी इस दिशा में पहल करेगा?
- या फिर यह सेंटर ऐसे ही बर्बादी का प्रतीक बनकर रह जाएगा?
निष्कर्ष:
भांठीगढ़ का रीपा सेंटर एक उदाहरण है कि अगर सरकारी योजनाओं की समय-समय पर निगरानी और निष्पादन नहीं किया जाए तो कितनी बड़ी राशि और जनता की उम्मीदें बर्बाद हो सकती हैं। ज़रूरत है कि शासन-प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान दे और इस केंद्र को पुनः क्रियाशील बनाने की पहल करे।