
स्वरचित पूनम दुबे “वीणा”
अम्बिकापुर
करते हैं तनमन से वंदन
हिंदी मेरी जान हैं
हिन्द की रहने वाली
हिंदी ही पहचान हैं
एक डोर में बांधी है
सरल और कितनी प्यारी है
हर कोई अपनाले इसको
ये तो राजदुलारी है
रहे युगों -युगों तक ये
करते सब सम्मान हैं
हिंद की …….
ओजस्विनी अनोखी हिंदी
कवि सूरों की सागर हैं
शब्दों का भंडार कितना
रोज छलकते गागर हैं
कालजायी भाषा हिन्दी
झूमें आसमान हैं ………
हिंद की रहने………..
लक्ष्य रख कर चल सदा तूँ
आसमाँ मुस्कायेगा
एक दिन हिंदी का पंचम
भारत में लहरायेगा
ठान लो कुछ भी करने को
हर मुश्किल आसान हैं……..
हिंद की रहने……
हिंदी ही पहचान है……..