
फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। क्षेत्र में धान के अलावा अन्य उत्पादन लेने सरकारी तंत्र कृषकों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं इस क्रम में खेती किसानी में मुनाफे वाली फसलों की खेती करने के लिए किसानों को राज्य शासन व केंद्र शासन द्वारा लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है ऐसे ही लधु धन्य में फसल रागी एक ऐसी फसल है जिनका हजारों साल का पुराना इतिहास है माना जाता है कि इसकी खेती हमारे देश में 4000 साल पहले शुरू हुई थी फसल की बुवाई की प्रक्रिया सबसे पहले अफ्रीका में हुई थी हमारे पूर्वज इसकी खेती लंबे समय से करते आ रहे थे बीच में कृषकों को रुझान धान व गेहूं की फसलों पर गया और धान्य वाली फसल की खेती भोजन की थाली से गायब हो गई परंतु अब शासन के लगातार प्रचार-प्रसार के कारण कृषकों ने अपनी खेती में रागी को स्थान देना शुरू कर दिया है रागी में प्रोटीन के साथ-साथ अमीनो एसिड कैल्शियम पोटेशियम की मात्रा में पाई जाती है कम हेमोग्लोबिन वाले व्यक्ति के लिए रागी सेवन करना बेहद फायदेमंद होता है। फिंगेश्वर विकासखंड के ग्राम जेंजरा के किसान मेधावी साहू ने बताया कि उन्होंने 3.5 एकड़ में रागी की फसल की खेती कृषि विभाग के मार्गदर्शन में कर रहे हैं बताया जाता है कि रागी की फसल भरी भूमि में किया जाता है लेकिन किसान मेधावी साहू ने जहां रागी की खेती की है वह खेत चारों ओर से धान के खेत से घिरा हुआ है उन्होंने खेत में पानी जमा ना हो इसलिए खेत में कई जल निकासी नालीया निकाली है जिससे खेत में पानी जमा नहीं होता है जिस कारण फसल की बढ़कर काफी अच्छी है कृषि के विभाग के अधिकारियों के अनुसार रागी की खेती काफी सरल है इसमें धान की फसल की अपेक्षा कीट वयोग व्याधि बहुत कम लगते हैं जिसके कारण खेती में लागत बहुत कम आती है यानी रागी की फसल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार विकासखंड में रागी की फसल फिंगेश्वर सहित जेंजरा, तर्रा,सुरसबंधा, घुरसा, सरगोड, भेंद्री आदि गांवों के किसानों द्वारा 400 हेक्टेयर यानी 1000 एकड़ में लगाई गई है जिसमें 51 हेक्टेयर के फसल का पंजीयन बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत बीज निगम में कराया है। जिसे 5700 रुपए प्रति क्विंटल की दर से उत्पादित रागी की फसल को खरीदी किया जाएगा। वही जिस रकबा के किसानों का बीज निगम पंजीयन नहीं हुआ है उसके उत्पादित फसल के वन समिति के माध्यम से 3575 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा। वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी बीआर साहू ने बताया कि रागी का बीज आदान सामग्री के रूप में खरपतवार नाशक जैविक कीटनाशक विभाग के कृषकों को प्रदान किया गया है। जिसमें समय-समय पर कृषि विभाग के अधिकारी कर्मचारियों द्वारा किसानों को सम सामयिक सलाह व तकनीकी मार्गदर्शन दिया जा रहा है वहीं उप संचालक कृषि संदीप भाई ने बताया कि रागी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की जरूरत होती है भारत में ज्यादातर जगहों पर इसे खरीफ की फसल के रूप में उगाते हैं। इस वर्ष कृषकों को रागी की बीज किस्म वी एल मंडुआ 379 कृषकों को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रदाय किया गया है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 95से100 दिन बाद पक्का तैयार हो जाते हैं।