बेईमानी किए बगैर रातो रात कोई इतना अमीर नही बन सकता? छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड का धन शोधन संयंत्र सुर्खियों मे, जन धन ऐसे हो रहा इकट्ठा…

रायपुर(गंगा प्रकाश)। भ्रष्टाचार का हमारे समाज और राष्ट्र में व्यापक रूप से असर हो रहा है।संपूर्ण व्यवस्था में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई। परिणामत: समाज में भय, आक्रोश व चिंता का वातावरण बन रहा है।राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक व प्रशासनिक आदि सभी क्षेत्र इसके दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं।
भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए दीमक की तरह है, जो मजबूत से मजबूत और बड़े से बड़े वृक्ष की जड़ों को चाट कर उसे ढहा देता है। भ्रष्टाचार हमारे समाज को अंदर से खोखला कर हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की हमारी क्षमता को खत्म करता है। सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर भी व्यापक रहता है। बताना लाजमी होगा कि इन दिनों छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड का धन शोधन संयंत्र देश भर में चर्चित हो रहा है। अखिल भारतीय सेवाओं से जुड़े इस रिटायर नौकरशाह की अनुपातहीन संपत्तियों का आंकलन किया जाए तो, सम्पूर्ण चल अचल संपत्ति 5000 करोड़ से ज्यादा का आंकड़ा पार कर सकती है। बताते हैं कि IAS बनने के बाद इस नौकरशाह ने आकुट धन दौलत कमाई है। इसका श्रोत विभिन्न सरकारी योजनाएं बताई जाती हैं। जिसकी कामयाबी का भार इस लोक सेवक के कंधो पर था.

देश के प्रथम श्रेणी के भ्रष्ट नौकरशाहों की सूची में विवेक ढांड का नंबर अव्वल दर्जे पर बताया जाता है। पहले मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ में अपनी धाक जमा चुके इस लोक सेवक ने लगभग 30 वर्षों की नौकरी में विभिन्न ओहदों पर पदस्थ रहते जन धन को इस कदर से अपनी तिजोरी में भरा की प्रदेश की जनता गरीबी का शिकार हो गई। राज्य सरकार लाखों के कर्ज में डूब गई। लेकिन इस IAS अधिकारी की ना तो सेहत में कोई असर पड़ा और ना ही उसकी तिजोरी सुनी रही। उसकी तिजोरी में रोजाना धन की बारिश होते रही, फिलहाल इस महान लोक सेवक का धन शोधन संयंत्र खूब सुर्खियां बटोर रहा है। यह सरकारी भूमि पर निर्मित किया गया है, वह भी बगैर वैधानिक अनुमति के।

छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड की बड़ी आपराधिक धोखाधड़ी सामने आई है। दस्तावेजी साक्षों के मुताबिक विवेक ढांड ने लगभग 4 एकड़ सरकारी जमीन पर आधुनिक धन शोधन संयंत्र स्थापित कर लिया है। जानकारी के मुताबिक विवेक ढांड ने पहले तो लगभग 500 करोड़ बाजार भाव वाली सरकारी जमीन को मात्र सवा करोड़ की अदायगी कर हथिया लिया। इसके बावजूद भी शासन को नही छोड़ा। उसकी आंखों में धूल झोंकने के लिए जो धोखाधड़ी की, वो भी कम गंभीर नही बताई जाती है। दस्तावेज बताते हैं कि विवेक ढांड ने जिस सरकारी जमीन पर कमर्शियल कॉम्प्लेक्स ताना है, उसका ना तो नक्शा पास हुआ है और ना ही जमीन का प्रयोजन बदला गया है।

बताते हैं कि परिसर की आवासीय जमीन पर बगैर शासन-प्रशासन की वैधानिक मंजूरी के विवेक ढांड ने बहू मंजिला व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स स्थापित किया है, उसकी कोई वैधानिक मंजूरी नही ली गई है, इस भूमि का रकबा खसरा नंबर 17/40 बताया जाता है। यह भूमि सरकारी रिकॉर्ड में आज भी आवासीय दर्ज है। यह भी बताया जा रहा है कि नगर निगम रायपुर और टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से वर्ष 2019 में धोखाधड़ी कर व्यवसायिक भवन बनाने की अनुमति ढांड द्वारा प्राप्त की गई है। इस भूमि का खसरा रकबा नंबर 17/39 है। यह पुराने भवन के स्थान पर है, इस भूमि पर ढांड द्वारा नया भवन के निर्माण हेतु अनुमति प्राप्त की गई थी। लेकिन उसके द्वारा नया व्यावसायिक परिसर खसरा रकबा भूमि नंबर 17/40 पर निर्मित किया गया है।

जमीन के जानकारों के मुताबिक कुल मिलाकर कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाने की तर्ज पर विवेक ढांड ने आवासीय जमीन पर व्यवसायिक इमारतें खड़ी कर शासन को बड़े राजस्व का चूना लगाया है। इस इमारत के खसरे नक्शे में हेर फेर देखकर कई अधिकारी हैरत में हैं। उनके मुताबिक पहले चीफ सेक्रेटरी फिर रेरा के चेयरमैन और फिर नवाचार आयोग के चेयरमैन की कुर्सी पर बैठने के बाद इस नौकरशाह ने जन धन की ना केवल खुली लूट मचाई बल्कि अधिकारों का जमकर दुरूपयोग भी किया। उसके तमाम घोटालों की CBI जांच की जरूरत बताई जा रही है। कई विभागीय अधिकारी खुद-ब-खुद पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। उनके मुताबिक EOW समेत राज्य की कोई भी एजेंसी विवेक ढांड के गैर कानूनी कृत्यों की जांच करने का दमखम नही रखती है।लिहाजा राज्य के सबसे बड़े सरकारी भूमि घोटाले की जांच अविलंब CBI को सौंपी जानी चाहिए।

बताते हैं कि ढांड के पिता स्व. सतपाल ढांड ने संयुक्त मध्यप्रदेश के दौर में खुद को भूमिहीन करार देकर आवासीय प्रयोजन के लिए प्रशासन से भूमि के छोटे से टुकड़े की मांग की थी। लेकिन प्रशासनिक अधिकारी विवेक ढांड के पद और प्रभाव से तत्कालीन प्रशासन इतना मेहरबान हुआ कि मात्र 2500 स्क्वायर फीट जमीन आबंटित करने के बजाए उसने लगभग 4 एकड़ सरकारी जमीन का कब्जा ढांड एंड कंपनी के नाम आबंटित कर दिया । सूत्रों के मुताबिक इतनी बड़ी सरकारी जमीन हथियाने के लिए ढांड एंड कंपनी ने कई दस्तावेजों में हेर फेर किए, और झुटी जानकारी देकर प्रशासन की आंखों में धूल झोंका था।

बताते हैं कि आर्थिक रूप से काफी समृद्ध होने के मूल तथ्यों को छिपाते हुए ढांड एंड कंपनी ने खुद को आर्थिक रूप से कमजोर और भूमिहीन बताया था। जबकि रायपुर के आस-पास के कई इलाकों में विवेक ढांड और उनके परिजनों के नाम पर लाखों की चल अचल संपत्तियां रजिस्टर्ड थीं। भू-पे राज में विवेक ढांड एंड कंपनी ने दिन दूनी और रात चौगुनी कमाई की थी। उनकी ऐसी लॉटरी लगी की जन धन सीधे इनकी ही तिजोरियां में बरसने लगा। वहीं दूसरी ओर प्रदेश में कई सरकारी योजनाएं अपने लोक हित के अंजाम तक पहुंचने से पहले ही भ्रष्टाचार और घोटालों की शिकार हो गईं।

प्रशासन के जानकार तस्दीक कर रहे हैं कि गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देते हुए इस विवेक ढांड नामक लोक सेवक ने मात्र 30 साल की सरकारी सेवा में इतना मेवा लूटा की उसकी धन दौलत 5000 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। स्विस बैंक और विदेशों में भी काला धन निवेश सम्बंधी कई दस्तावेज इन दिनों चर्चा में बताए जाते हैं। यह देखना गौरतलब होगा कि ढांड के भूमि घोटालों की जांच को लेकर बीजेपी सरकार क्या कदम उठाती है ? लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने वाली विष्णुदेव साय सरकार घोटालेबाज़ों को सस्ते में छोड़ने के कतई मूड में नहीं है।

देश का सबसे बड़ा दुश्मन भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए दीमक की तरह है, जो मजबूत से मजबूत और बड़े से बड़े वृक्ष की जड़ों को चाट कर उसे ढहा देता है। भ्रष्टाचार हमारे समाज को अंदर से खोखला कर हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की हमारी क्षमता को खत्म करता है। सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर भी व्यापक रहता है। भ्रष्टाचार को चार तरह से समझा जा सकता है।

दाल में नमक

पहला भ्रष्टाचार निम्नस्तरीय और बहुत ही आम है। इसे ‘स्पीड मनी’ भी कहा जाता है। इसमें छोटे-छोटे भुगतान कर सरकारी दफ्तरों में अपने काम तेजी से निपटवाकर आम आदमी अपना समय व पैसा बचाने की जुगत में रहता है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति अपने वैध चेक न रोकने और पासबुक में सही समय पर एंट्री सुनिश्चित करने के लिए बैंक के रोकड़िये को मामूली भुगतान कर खुश रखता है। आदर्श रूप से प्रक्रिया और प्रणाली अंतर-संवाद से इतनी सुरक्षित होनी चाहिए कि इस तरह के भ्रष्टाचार को पनपने का मौका ही न मिले, लेकिन इस तरह की चीजें सामान्य तौर पर संभव नहीं हो पाती हैं, जिससे निम्नस्तरीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। लोग इस तरह के भ्रष्टाचार को आम बोलचाल में ‘दाल में नमक’ कहते हैं। सामाजिक तौर पर इसे पूरी तरह स्वीकार भी किया जा चुका है। इसका अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर नहीं पड़ता है।

कानून का उल्लंघन करने की छूट

दूसरे तरह का भ्रष्टाचार भुगतान करने वाले को कानून का उल्लंघन करने की छूट देता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने के दौरान पकड़े जाने पर ट्रैफिक पुलिस को दी जाने वाली घूस इसका सामान्य सा उदाहरण है। इस तरह के भ्रष्टाचार का समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। दंड या जुर्माने से कम घूस देकर छूट जाने पर कानून का उल्लंघन करने वालों के हौसले बढ़ जाते हैं। उनका व्यवहार आक्रामक होता जाता है। यातायात के मामले में इस तरह के भ्रष्टाचार के नतीजे ट्रैफिक जाम, सड़क पर मारपीट-झगड़ा और दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी के तौर पर सामने आता है। कई बार गंभीर मामलों में भी पुलिस या मामले से जुड़े अधिकारियों को घूस देकर आरोपी बच निकलते हैं। कई बार नेताओं से दबाव डलवाकर भी आरोपी साफ बरी हो जाता है।

संगठनों और यूनियनों का भ्रष्टाचार

कुछ लोग एकजुट होकर जरूरतमंदों से ज्यादा शुल्क या लागत वसूलते हैं, जिससे सेवाओं या वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है। नतीजतन कुछ उपभोक्ता उन वस्तुओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। यह तीसरे प्रकार का भ्रष्टाचार है। उत्पादक संगठन और मजदूर यूनियन इस भ्रष्टाचार में लिप्त रहती हैं। इससे निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचती है और जनकल्याण पर नकारात्मक असर पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का संगठन या दवा निर्माता इसका उदाहरण हो सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता आम आदमी से अस्पताल में भर्ती होने की भारी कीमत वसूलते हैं, तो दवा निर्माता जीवनरक्षक दवाइयों के ऊंचे दाम लेते हैं। हवाई सुविधाओं के क्षेत्र में पायलट और केबिन क्रूफ की ट्रेड यूनियन खराब व्यवहार को बढ़ावा देते हैं और सुरक्षा मानकों से समझौता करते हैं।

सरकार का भ्रष्टाचार

सरकार का दो पक्षों में से एक की तरफ से खड़े होकर सौदा पक्का कराने से देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। यह चौथे तरह का भ्रष्टाचार है। इसमें भुगतान के लिए कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। सरकार से जुड़े लोगों को खुश करने के लिए दलाली, घूस, उपहार या सीधे नकद भुगतान भी किया जाता है। सरकार को यह भुगतान सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और कई बार निजी कंपनियों को वस्तु व सेवा आपूर्ति का सौदा पक्का कराने के लिए किया जाता है। रक्षा उपकरणों की आपूर्ति और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का सौदा पक्का कराने के लिए घूस और दलाली इस तरह के भ्रष्टाचार का सीधा उदाहरण है। इसी श्रेणी के भ्रष्टाचार में भूमि, स्पेक्ट्रम, खनन लाइसेंस, कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए सरकार या उनकी एजेंसियों को घूस देना भी शामिल है। कुछ लोगों को फायदा या प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचाने के लिए नियमों को बदलने के लिए दी जाने वाली रिश्वत सरकारी भ्रष्टाचार की इसी श्रेणी की उपश्रेणी है। इसमें कारोबारी घरानों का खास वर्ग नेताओं और नौकरशाहों के साथ गठजोड़ कर लेता है। इस तरह का भ्रष्टाचार इस हाथ ले-इस हाथ दे की नीति पर काम करता है। अपने फायदे के बदले में कारोबारी घराने भ्रष्ट राजनीतिक दलों और अधिकारियों को लाभ पहुंचाते हैं।

देश के रणनीतिक हितों से समझौता

नेताओं और कारोबारी घरानों की साठगांठ से होने वाला भ्रष्टाचार सरकारी फैसलों पर बुरा असर डालता है। नतीजतन कंपनियों को बाजार में बराबर का मौका नहीं मिलता। इससे न केवल कारोबार की लागत बढ़ जाती है, बल्कि देश के रणनीतिक हितों के साथ भी समझौता किया जाता है। इस श्रेणी के भ्रष्टाचार का सबसे खतरनाक असर सरकारी फैसलों में नजर आता है। निवेश का माहौल पूरी तरह से अनिश्चित नजर आने लगता है और निवेशक घबराने लगते हैं। निवेशकों को पता ही नहीं चलता कि मौजूदा नियम कब और किस दिशा में बदल दिए जाएंगे। उन्हें निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने की परिस्थितियों का जरा भी अंदाजा नहीं होता। ऐसे अनिश्चित माहौल में निवेश गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ जाती हैं। दुर्भाग्य से कुछ ऐसा ही संप्रग-दो के शासनकाल में हुआ है। आर्थिक वृद्धि अपने निचले स्तर पर पहुंच गई, जिसका रोजगार और जनकल्याण पर बुरा असर पड़ा। सबसे खतरनाक बात है कि इस तरह का भ्रष्टाचार संगठित हो गया है, जबकि बाकी सभी स्तर के भ्रष्टाचार दबे-छुप रहते हैं। सरकार का प्रणालीगत और अद्श्य भ्रष्टाचार अमूमन संगठित व वैध आर्थिक गतिविधियों को क्षति पहुंचाता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बुरा असर पड़ता है। संगठित भ्रष्टाचार समाज में जंगलराज को बढ़ावा देता है। इतिहास गवाह है कि इस तरह के भ्रष्टाचार ने बड़े-बड़ साम्राज्यों को खत्म कर दिया। ऐसे भ्रष्टाचार से ही आजिज आकर जनता ने बड़े-बड़े खूनी आंदोलनों को खड़ा किया है। देखना है भारत में क्या होता है।

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