गरियाबंद के भाई-बहन ने रचा कमाल: ‘ओरिजनल साउथ इंडिया टेस्ट’ से स्टार्टअप की उड़ान, पहले दिन 350 रुपये का मुनाफा

गरियाबंद के भाई-बहन ने रचा कमाल: ‘ओरिजनल साउथ इंडिया टेस्ट’ से स्टार्टअप की उड़ान, पहले दिन 350 रुपये का मुनाफा

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। गर्मी की छुट्टियों में जब बच्चे मस्ती में डूबे होते हैं, तब छत्तीसगढ़ के गरियाबंद शहर के दो नन्हे सितारों ने मिसाल पेश की है। वाकपल्ली योगनी (17) और वाकपल्ली महेश (15) ने परिवार की आर्थिक मदद के लिए ‘ओरिजनल साउथ इंडिया का ओरिजनल टेस्ट’ नाम से इडली-डोसा स्टार्टअप शुरू किया। पहले ही दिन 1500 रुपये की बिक्री और 350 रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाकर दोनों ने दिखा दिया कि हौसले उम्र के मोहताज नहीं होते।

कैसे हुई शुरुआत?

गरियाबंद में बीते 40 वर्षों से बसे वाकपल्ली परिवार की जड़ें दक्षिण भारत से जुड़ी हैं। पिता वाहन चालक हैं और मां गृहणी। मां के हाथों में दक्षिण भारतीय व्यंजनों का अनोखा स्वाद है।

गर्मी की छुट्टियों में योगनी और महेश ने सोचा कि क्यों न मां के हुनर को एक स्टार्टअप में बदला जाए और घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जाए। पिता की शुरुआती चिंता के बावजूद, मां ने बच्चों का हौसला बढ़ाया और सुबह 3 बजे उठकर इडली-डोसा तैयार करना शुरू किया। एक छोटा ठेला, कुछ बर्तन और परिवार का आशीर्वाद – इन्हीं संसाधनों से दोनों ने अपनी उद्यमिता यात्रा शुरू की।

कड़ी मेहनत से मिली कामयाबी

हर सुबह योगनी और महेश ठेले को लगभग 1 किलोमीटर धक्का देकर शारदा चौक से पुराने एसपी ऑफिस और आत्मानंद स्कूल के पास लगाते हैं। सिर्फ 3 घंटे में उनका सारा सामान बिक जाता है।

योगनी कहती हैं, “हम चाहते हैं कि पापा का हाथ बटाएं और अपनी पढ़ाई भी बेहतर ढंग से पूरी करें।”

महेश मुस्कुराते हुए जोड़ते हैं, “लोगों को मम्मी की चटनी और इडली-डोसा बहुत पसंद आ रही है। हमें बहुत खुशी हो रही है।”

स्टार्टअप की खासियत

  • पारंपरिक स्वाद: मां के हाथों से बने पारंपरिक साउथ इंडियन व्यंजन।
  • सच्ची मेहनत: रोजाना सुबह की तैयारी और खुद से रेहड़ी का संचालन।
  • स्पष्ट लक्ष्य: परिवार की मदद और भविष्य के लिए शिक्षा में निवेश।

शहर में चर्चा का केंद्र

चार दिनों में ही योगनी और महेश की रेहड़ी गरियाबंद में लोकप्रिय हो गई है।

स्थानीय निवासी लोकेश सिन्हा कहते हैं, “इतनी कम उम्र में इतनी समझदारी और मेहनत – सच में गर्व की बात है।”

ग्राहक गुरुनूर कुकरेजा भी कहते हैं, “इडली का स्वाद इतना शानदार है कि रोज खाने का मन करता है। गरियाबंद में ऐसा स्वाद मिलना खुशी की बात है।”

युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा

योगनी और महेश की कहानी आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। यह सिखाती है कि अगर मेहनत और लगन हो, तो उम्र कोई बाधा नहीं बनती।

उनकी सफलता हमें याद दिलाती है कि “सपनों को हकीकत बनाने के लिए साहस और मेहनत ही असली पूंजी हैं।”

आगे की योजना

भविष्य में योगनी और महेश अपने स्टार्टअप को और बड़ा करने और उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना देख रहे हैं। उनकी मेहनत और जज्बा देखकर लगता है कि वे बहुत जल्द नई ऊंचाइयों तक पहुंचेंगे।

तो अगली बार जब आप गरियाबंद में आत्मानंद स्कूल के पास से गुजरें, ‘ओरिजनल साउथ इंडिया का ओरिजनल टेस्ट’ का स्वाद लेना और इन नन्हे उद्यमियों का हौसला बढ़ाना न भूलें।

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