
बालक आश्रम तौरेगा की बच्चे को पेट भर खाना भी नसीब नही
मैनपुर (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आदिवासीयों के विकास ओर उत्थान के लिए करोड़ो रूपये सरकार खर्च किये जा रहें है इसके किये शासन कई बड़ी योजनाएं संचालित कर रही है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए वनांचल में आवासीय विद्यालय सहित कई बालक आश्रम भी स्थापित किए गए हैं, ताकि बच्चे पढ़ लिखकर अपना भविष्य बना सकें। यंहा आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आश्रम छात्रावास भगवान भरोसे संचालित हो रही हैं इनकी दफ्तर से ही मानिटरिंग की जा रही है। जंहा आदिवासीयों के लिए बनी यह योजना भ्रष्टाचार का केंद्र बिंदु बन गई हैं वरन इन आश्रम छात्रावासों पर विभागीय नियंत्रण भी ढीली पड़ गई है शासन द्वारा तमाम सुविधाएं दिए जाने के बावजूद छात्रावासों की नियमित मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है।

मामला जहां विकासखंड मैनपुर के 22 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत तौरेगा के आदिवासी बालक आश्रम है।जिसे शासन द्वारा सन 1994,95 में बालक आश्रम का निर्माण हुआ था जहां पर मैनपुर ब्लॉक सहित देवभोग ब्लॉक के बच्चे भी पढ़ते हैं। यह बालक आश्रम अब भगवान भरोसे चल रहा है। दैनिक भास्कर स्वाददाता ज़ब पड़ताल करने पहुँचे तों आश्रम तौरेंगा की तस्वीर देख कर हैरान रह गए , यहां पढ़ने वाले मासूम बच्चे बदबूदार कमरे को अपना शयन कक्ष बना कर वही सोते है । बेतरतीब व अस्त व्यस्त भीगे हुए बिस्तर, बदबूदार बेडशीट पर बच्चे रहने को मजबूर है ।

आश्रम भवन के खिड़कियो में दरवाजे नहीं होने के कारण जहरीले जंतुओ का आना जाना लगा रहता है। जिसके कारण कोई भी दुर्घटना घट सकती है। बारिश के दिनों मे खतरा और भी बढ़ जाता है.वन क्षेत्र होने से जहरीले जीव सांप बिच्छू दिखना आम बात है।यंहा आश्रम में बच्चों का बिस्तर खिड़की से टिका हुआ है ऐसे में खतरा और भी ज्यादा बना हुआ।

100 सीटर बालक आश्रम में मात्र 40 बिस्तर ही उपलब्ध है
वर्तमान अधीक्षक द्वारा बताया गया कि यह बालक आश्रम 100 सीटर का है और अभी 89 बच्चे इस आश्रम में अध्ययनरत हैं जहां आश्रम में केवल 40 बेड ही उपलब्ध है जहां एक पलंग पर दो बच्चे सोते हैं और बेड पर मच्छरदानी भी उपलब्ध नहीं है ऐसे में बच्चों की सुरक्षा गैरजिम्मेदार अधीक्षक के हवाले है।

भरपेट भोजन के लिए तरसते बच्चे
बालाक आश्रम तौरेगा का हाल क्या बयां करें यहां तो बच्चों को भरपेट भोजन भी उपलब्ध नहीं होता है ना यहां उन्हें खाने में सब्जी परोसा जाता है चावल दाल और अचार से ही खाना परोस दिया जाता है बच्चों की थाली से सब्जी कोसों दूर है नौनिहाल बच्चे अपने इस तकलीफ को किसी को बता भी नहीं सकते हैं।

आश्रम भवन में साफ सफाई का कोई ध्यान नहीं रखा जाता
आश्रम में कक्षाएं पूरी बदबूदार कमरे और हाल बेहाल कक्षाएं ऐसे ही बच्चों को मजबूरी बस वहां रहने को मजबूर हैं जहां पर साफ-सफाई का तो कोई ध्यान नहीं रखा जाता ऐसे मे बिस्तर गद्दे बेडशीट भीगे हुए रहते हैं प्रशासन यदि ध्यान ना दें तो बच्चे बीमार पड़ सकते हैं मौसमी बीमारी के शिकार हो सकते हैं।बालाक आश्रम में नए गद्दे तो उपलब्ध हैं मगर उसे कोई देने वाला जिम्मेदार वहां मौजूद नहीं है नए गद्दे को एक कमरे में सजा कर रख दिया गया है जाने किसका इंतजार है इन गद्दों को यह वहां के जिम्मेदार ही बता पाएंगे।

आगंतुक पंजी भी तैयार नहीं
आश्रम अधीक्षक की गैर जिम्मेदारी से आश्रम में परिसर में कोई भी व्यक्ति कभी भी आकार घुस जाते है जिसे यह पता चलता है कि आश्रम व्यवस्था दुरुस्त नहीं हैं जहां पर देखा गया की इस आश्रम में आगंतुक पंजी भी तैयार नहीं किया गया है जिससे पता जिससे दिन रोजमर्रे की आने जाने वाले परिजन के मिलने का पता चलता ऐसे में कोई भी बाहरी व्यक्ति आश्रम परिसर में घुस जाता है।

आश्रम भवन जर्जर पानी टपकती छत पर रहने को मजबूर
बालक आश्रम तौरंगा का निर्माण सन 1994 ,95 में हुआ था जो आज तक पूरी जर्जर हो चुकी है छतों से पानी टपक रहा है जहां छत मे छड़ बाहर आ चुकी हैं जिसके कारण पूरी तरह छत कमजोर हो चुकी है जिससे कभी भी हादसा हो सकता है इन जर्जर भवनों में नौनिहालों को अध्ययन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ऐसे में प्रशासन की उदासीनता साफ दिखाई दे रही है।

अधीक्षक आवास भवन चढ़ा भ्रष्टाचार की भेंट
बालक आश्रम तौरेंगा में आदिम जाति अनु जाति विभाग द्वारा 8 लाख की लागत से अधीक्षक आवास भवन 2016 में निर्माण कराया गया था जो कि सात वर्षो में ही पूरी तरह जर्जर हो चुकी है जहां इंसान तो दूर जानवरों को भी नहीं रखा जा सकता ऐसी स्थिति इस भवन की है जहां भवन का फर्श दो भागों में बट गया है दरवाजों का ठिकाना नहीं दरवाजे पूरे टूटे पड़े हुए हैं इस तरह पूरी भवन जर्जर स्थिति में है देखने से साफ दिखता है की यह भवन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है।
आश्रम के शिक्षक अधीक्षक बनने लगाए गिद्ध की नजर
आजकल देखा जा रहा है कि शिक्षकों में पठन-पाठन को छोड़कर अधीक्षक बनने की होड़ सी मची हुई है जहां पर शिक्षक अपने चहेते अधिकारी व जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर अपना मूल पद छोड़कर आश्रम में अधीक्षक बनने के लिए गिद्ध की नजर बनाए हुए हैं कि हमें जैसे तैसे किसी भी माध्यम से अधीक्षक का प्रभार मिले ताकि वे बच्चो का पेट मारकर अपनी जेब गर्म कर सकें उन्हें बच्चों के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है उनका अध्ययन अध्यापन कार्य छोड़कर आश्रम की बजट की ओर ध्यानाकर्षण कुछ ज्यादा हीं हैं इससे साफ पता चलता है की शिक्षक अपने आप में पठन-पाठन छोड़कर अधीक्षक बनने की होड़ मे लगे है ।
आश्रम में किचन सेट नहीं होने से झोपड़ी में बनाया जाता है भोजन
बडा ही दुर्भाग्य कहा जाय की जहां 100 बच्चों का खाना बनाया जाना है वंहा किचनशेड तक नही है भोजन एक झोपड़ी बनाया जाता है जहां ढंग का छत भी नहीं है खुले आसमान के निचे नौनिहालों के लिए भोजन बनाया जाता है ऐसे में बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किन के हाथों में है जिस तरह बारिश के दिनों में टपकते पानी में भोजन बनाया जाता है उससे कई प्रकार की रोगो को जन्म दे सकता है ।

बालक आश्रम में पानी की व्यवस्था भी नहीं
बालक आश्रम तौरंगा में साफ पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं है जहां सौर प्लेट के माध्यम से ट्यूबवेल चलता है यदि बारिश के मौसम में धूप नहीं निकलने पर ट्यूबेल नहीं चल पाता उस दिन बच्चों को नहाने खाने पीने का पानी भी नसीब नहीं होता है ट्यूबवेल मात्र शोपीस बनकर कर रह जाता है इस तरह की तकलीफों से आश्रम में बच्चे बड़ी मुश्किल से जीवन यापन क़र पा रहे हैं ।
बच्चों के खेलने के लिए पर्याप्त मैदान व्यवस्था भी नहीं
बालक आश्रम में आवासीय परिसर तो बनाया गया है परंतु बच्चों के खेलने के लिए पर्याप्त मैदान का अभाव है जहां पर देखा गया कि मैदान नहीं होने से बच्चों के मानसिक विकास जड़ नहीं पकड़ेगा ऐसे में बच्चे का विकास होना नामुमकिन है आश्रम भवन के सामने में बागवानी लगा दिया गया है जिसमें घास भर गया है।
कलेक्टर से गुहार लगाने पहुंचे ग्रामीण
बदहाल आश्रम व्यवस्था से परेशान होकर कलेक्टर से गुहार लगाने के लिए पहुंचे ग्रामीणों ने बताया की आश्रम अधीक्षक द्वारा जिस तरह से बच्चों को भरपेट नहीं देना कहां तक न्याय संगत है वहां की व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है उन्होंने बताया जिस तरह से बच्चे खाने के लिए तरस रहे हैं इससे साफ पता चलता है कि वहां की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है ग्रामीण व परिजन परेशान हो कलेक्टर से गुहार लगाने के लिए जिला तक पहुंचे।