इच्छा मृत्यु मामले में प्रबंधन ने कहा: नहीं मिला था स्वामित्व, सरकारी थी जमीन

खबर प्रकाशन के बाद एसईसीएल ने दिया नियमों का हवाला

भागवत दीवान 

कोरबा(गंगा प्रकाश) एसईसीएल की गेवरा परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई ग्राम कोसमन्दा की जमीनों में शामिल शक्तिदास महंत की 3 एकड़ भूमि के एवज में नौकरी, मुआवजा बसाहट के लिए वर्षों से संघर्षरत पुत्र बंशीदास बदहाली के दौर से गुजर रहा है। उसने एसईसीएल के अधिकारियों पर प्रताडऩा और असहयोगात्मक रवैया तथा प्रशासन को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए जिला प्रशासन से अपने बच्चों सहित इच्छा मृत्यु की अनुमति की गुहार लगाई है। 80 फीसदी दिव्यांग हो चुका बंशीदास अपनी एक बीमार बेटी सहित 5 बच्चों के पालन पोषण में अक्षम है। इस मामले को प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने के बाद एसईसीएल प्रबंधन की ओर से उनके जनसंपर्क अधिकारी डॉ सनीष चंद्र ने प्रबंधन का पक्ष रखा है।

इस मामले में एसईसीएल प्रबंधन की ओर से जनसंपर्क अधिकारी डॉ सनीष चंद्र ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया है कि उक्त भूमि जिस पर बंशीदास के द्वारा दावा किया गया है, वह उसके पिता शक्तिदास महंत के स्वामित्व में अधिग्रहण के दौरान दर्ज नहीं थी। भूमि अधिग्रहण के लगभग 2-3 वर्षों पश्चात शासकीय पट्टेदार से भूस्वामी घोषित किया गया। अधिग्रहण के समय वर्ष 1983-84 में खसरा नं. 438/1 क रकबा 77.36 एकड़ जंगल मद की भूमि मध्यप्रदेश शासन के स्वामित्व की थी। उक्त भूमि और दावा के संबंध में उच्च न्यायालय में याचिका विचाराधीन है, जिसके निर्णय की प्रतीक्षा है।प्रबंधन द्वारा बताया गया कि बंशीदास ने पूर्व में कई शासकीय पट्टेदारों को मुआवजा व रोजगार देने का उल्लेख आवेदन में किया है जिसे दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर प्रबंधन अस्वीकार नहीं कर सकता लेकिन इस प्रकार की कार्यवाही पूर्व में वर्ष 1990 के दशक में संभवत: जानकारी के अभाव में विधि विरुद्ध कार्यवाही की गई थी, जिसका उदाहरण देकर फिर से विधि विरुद्ध कार्यवाही किया जाना विधि संगत प्रतीत नहीं होता है। प्रबंधन की ओर से कहा गया है कि शिकायतकर्ता हठधर्मिता को अपनाते हुए इच्छामृत्यु का हवाला देकर नियम विरुद्ध कार्य करने हेतु विवश करने का प्रयास कर रहा है जिसे स्वीकार किया जाना उचित और संभव नहीं है।

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